पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२३८

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पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रदेश बाजरे की शरण नहीं लेनी पड़ती और इतने ईमानदार है कि न इन्हें अपने दरवाजों में लाले लगाने पड़ते हैं और न लेन देन में इन्हें लिखा पढ़ी की जरूरत होती है। कभी भी किसी भारत- वामी को झूठ बोलते हुए नही सुना गया ।"ॐ उस समय के भारतवासियों के चरित्र की इस समय के भारतवासियों के चरित्र से तुलना करना अत्यन्त दुखकर है। इस तुलना पर टीका करते हुए और मिश्र यूनान इत्यादि की मिसालें देते दुए ई० ए० रॉस लिखता है- "भारतवासियों के उच्चतर जीवन के ऊपर विदेशी शासन का प्रभाव ऐसा ही है जैसा किसी चीज़ को पाला मार गया हो।" निस्सन्देह पिछले पौने दो सौ साल से यह प्राचीन देश वेग के साथ मानसिक, नैतिक और भौतिक सर्वनाश की ओर बढ़ता चला जा रहा है। हमारा कर्तव्य अंगरजी राज कब से - सब से अन्तिम, किन्तु सब से अधिक गम्भीर प्रश्न हमारे सामने यह है कि इस घातक विपत्ति से निकलने का हमारे लिए अब क्या उपाय हो

  • "They are remarkably brave, superior I wer to an Astatics , they

are remarkable for sumpherty and integrity, so reasonable as never to have recoursetolat suit and so honest as neither to require locks to theur doors nor writings to bind ther agreement. No Indian was ever known to tell an untruth "The Greek sustonan Arrial, as quoted in Ibrd, Pp 133,133. Tn. the aher do2010d has a blighting effect upon the higher life & the people of Indra "-Ibrd