भारत में अंगरेजी राज सदो के मध्य में बंगाल के अन्दर हमें यह लज्जाजनक दृश्य देखने को मिलता है कि उस समय के विदेशी ईसाई कुछ हिन्दुओं के साथ मिलकर देश के मुसलमान राज के खिलाफ गदर करने और उस राज को नष्ट करने के पड्यंत्र रच रहे थे। अंगरेज कम्पनी के गुप्त मदद- गारों में मुख्य कलकत्ते का एक मालदार पञ्जादी व्यापारी अमीचंद था। उसे इस बात का लालच दिया गया कि नबाब को खतम कर मुर्शिदाबाद के खजाने का एक बड़ा हिस्सा इन सेवाओं के बदले में तुम्हें दे दिया जायगा और "ईगलिस्तान में तुम्हारा नाम इतना अधिक होगा जितना भारत में कभी न हुआ था।” कम्पनी के मुला- ज़िमों को आदेश था कि "अमीचंद की खूब खुशामद करते रहो।"* अंगरेज षड्यंत्रकारियों में एक खास नाम इस समय करना स्कॉट का मिलता है । करनल स्कॉट ने बहुत दिनों बंगाल में रह कर खूब मेल जोल बढ़ाया और अमीचंद की मदद से चुपके चुपके कई बड़े बड़े हिन्दु राजाओं और रईमों को अपनी ओर मिला लिया। अमीचंद के धन और अंगरेज कम्पनी के झूठे सच्चे वादों ने मिलकर नवाव के अनेक दरबारियों और सम्बन्धियों की नियत को डाँबा डोल कर दिया। उधर कलकत्ते में अंगरेजों और चंदरनगर में फ्रांसीसियों की किलेबंदियाँ बरावर जारी थीं। नवाब अलीबर्दी खाँ को इन सब बातों का थोड़ा बहुत पता चल गया। उसे इस बात का भी पता चल गया कि दक्खिन में
- Crve's letter to Watts.