पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३८
भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजो राज में बॉट लिया है। इन तीनों यूरोपियन क्रौमों को एक साथ निर्बल करने का स्या न करना । अंगरेजों की ताकत बढ़ गई है x x x पहले उन्हें जेर करना ! जब तुम अंगरेजों को जर कर लोगे तो बाकी दोनों कौमें तुम्हें अधिक कष्ट न देंगी। मेरे बेटा, उन्हे किले बनाने या फौजें रखने की इजाजत न देना ! यदि तुमने यह ग़लती की तो मुल्क तुम्हारे हाथ से निकल जायगा ।"* १० अप्रैल सन् १७५६ ई० को नवाव अलोवर्दी खाँ की मृत्यु हुई और सिराजुद्दौला अपने नाना की मसनद पर बैठा। सिराजुद्दौला की श्रायु इस समय २४ साल से ऊपर न थी। मुग़ल साम्राज्य की जड़ें काफ़ी खोखली हो चुकी सिराजुद्दौला और थीं। ईस्ट इंडिया कम्पनी की साजिशे भीतर ही वापस बंगाल की मसनद ५ भीतर काफी फैल चुकी थीं और अंगरंजों के हौसले बढ़े हुए थे। हिन्दोस्तान में अंगरेजी सत्ता का कायम होना और सिराजुद्दौला के खिलाफ अंगरेजों की साजिशे इन दोनों में अत्यन्त गहरा सम्बन्ध है । एक दिन भी बंगाल की मसनद अभागे सिंगजुद्दौला के लिए फूलों की संज सावित न हुई । इंगलिस्तान के व्यापारी प्रारम्भ से ही उसके पहलू में काँटे की तरह चुभते रहे। उन अंगरेज व्यापारियों ने, जो इससे पहले अपने तई प्रत्येक भारतीय नरेश की "विनीत और आज्ञाकारी प्रजा" कहा करते थे और एक एक रिश्रायत के लिये “अर्जियाँ" दिया करते थे, अब अपने गुप्त प्रयत्नों के बल जान बूझ कर नवाव सिराजुद्दौला का

  • Bengal in 1756-1757, vol 1 p 16