पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२९३

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सिराजुद्दौला

सिराजुद्दौला सरह तरह से अपमान करना शुरू कर दिया। निस्सन्देह वे अब छेड़ छाड़ का बहाना ढूंढ़ रहे थे। सब से पहला अपमान जो इन लोगों ने सिराजुद्दौला का किया वह यह था । प्राचीन प्रथा के अनुसार हर नए सिराजुद्दौला के सूबेदार के मसनद पर बैठने के समय तमाम मात- साथ अंगरेजों का व्यवहार हत राजाओं, अमीरों और विदेशी कौमों के वकीलों का दरबार में हाजिर होकर नज़रें पेश करना जसरी था। इसका एक मात्र अर्थ यह होता था कि वे नए नवाब को नवाब स्वीकार करते हैं। सिराजुद्दौला के मसनद पर बैठने के समय अंगरेज कम्पनी की ओर ले कोई नजर पेश नहीं की गई। इसके बाद जब कमी अंगरेजों को मुर्शिदाबाद के दरबार से कोई काम पड़ता था, तो वे कभी सिराजुद्दौला से बात न करते थे, बल्कि ऊपर ही ऊपर ले देकर दरवारियों से अपना काम चला लेते थे। वे सिराजुद्दौला के साथ पत्र व्यवहार करने से भी बचते थे। उन्होंने एक बार अपनी कालिमबाज़ार की कोठी में सिराजुद्दौला को पाने तक से रोक दिया। निस्सन्देह कोई शालक या नरेश इस तरह के अपमान को गधारा न कर सकता था। किन्तु इस व्यक्तिगत अप- मान के अलावा और भी कई ज़बरदस्त सबब थे, जिन्होंने अंत में सिराजुद्दौला को अंगरेज कम्पनी की बढ़ती हुई ताकत को रोकने के लिए मजबूर कर दिया। इनमें तीन मुख्य सबब ये थे --- (१) साम्राज्य के कानून और नवाब की आज्ञाओं, दोनों के खिलाफ अंगरेजों ने उस सूबे के अंदर कलकत्ते में और दूसरी जगह