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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज इसके बाद दूसरी जगह, जहाँ मानिकचंद अंगरेजों का मुका- बला कर सकता था, कलकत्ता थी। किन्तु यहाँ कलकत्ते पर अंग- पर उसने या उसके विदेशी दोस्तों ने दिखाये की रेजों का फिर से " भी जरूरत न समझी ! बजबज से भागकर मानिक- कब्जा चंद सीधा हुगली पहुँचा । वहाँ से उसने सिराजु- दौला को कहला भेजा कि "अंगरेजों की विशाल ( ? ) सेना के सामने मैं ठहर न सका।" २ जनवरी सन् १७५७ को मानिकचंद की गैरहाजिरी में बहुत आसानी से कलकत्ता फिर से अंगरेजों के हाथों में आगया। इसके बाद तान्नाह का किला भी अंगरेज़ी सेना को पहले ही से खुला हुआ और खाली मिला। ३ जनवरी सन् १७५७ को कलकत्ते का किला ड्रेक और उसकी एक कौसिल के हवाले कर दिया गया। अंगरेज़ इतिहास लेखक एस० सी० हिल लिखता है कि इस समय सिराजुद्दौला पर हमला करने से पहले अंगरेजों के सामने एक खास सवाल यह था कि सिराजुद्दौला की जगह सूबेदारी का हकदार किसको खड़ा किया जाय। कुछ की सलाह थी कि “सरफ़राज़ ख़ाँ के उन वेटों में से एक को, जो इस समय ढाका में कैद थे, सिराजुद्दौला के खिलाफ सूबेदारी का हकदार खड़ा कर दिया जाय।"* किन्तु यह मामला अभी तय नहीं किया गया। कलकत्ते के आस पास केवल एक हुगली का किला और बाकी रह

  • Bengal in 1756-57, vol. i. p. cxxxVII