पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३४९

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सिराजुद्दौला

सिराजुद्दौला पहुँचा और उससे अपनी पिछली तमाम भूलों के लिए क्षमा माँग कर प्रेम की प्रार्थना की। मीर जाफर ने कुरान हाथ में लेकर सिरा- जुद्दौला के सामने वफादारी की कसम खाई। सिराजुद्दौला को अविश्वास का कोई सबब न हो सकता था। मुर्शिदाबाद से २० मील दूर पलाश वृतों का एक बन था, जिसे ___ पलाशी बाग भी कहते थे। उसी बन के पास लासी को है की लासी नामक गाँव में बृहस्पतिवार २३ जून सन् १७५७ ईसवी को दोनों सेनाओं का आमना सामना हुअा। प्रधान सेनापति भीर जाफर के अलावा सिराजुद्दौला की सेना में तीन और मुख्य संनापति थे यारलुत्फ़ खाँ, राजा दुर्लभराम और भीर मुइउद्दीन जिले मीर मदन भी कहते थे । ४५००० सेना मीर जाफर, यारलुत्फ खाँ और राजा दुर्लभराम के अधीन थी। १२००० मीर मदन के अधीन थी। सिराजुद्दौला का एक खास प्रेमपात्र मोहनलाल भी मीर सदन के साथ था। थोड़ी ही देर के युद्ध में क्लाइव की कायरता और अकुशलता दोनों साफ़ चमकने लगी। विजय साफ़ सिराजुद्दौला की ओर नज़र आती थी। ऐन मौके पर मीर जाफर का रुख बदलता हुआ दिखाई दिया। करनल मालेसन लिखता है कि खबर पाते ही सिराजुद्दौला ने अपना सन्देह दूर करने के लिए मीर जाफर को अपने पास बुलवाया । उसने मीर जाफर को अपने और मोर जाफर के सम्बन्ध और अपने नाना अलीधर्दी खाँ की याद दिलाई। इसके बाद अपनी पगड़ी सर से उतार कर सिरा-