पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३६५

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मीर जाफ़र

मीर जाफ़र १०४ पटने की तरफ़ रवाना हुआ। पहले वहाना यह लिया गया कि यह सेना फ्रान्सीसियों का पीछे करने के लिए भेजी जा रही है। किन्तु १२ अगस्त को मेजर कूट के पास क्लाइव का एक पत्र पहुँचा जिसमें क्लाइव ने उसे यह हिदायत की कि तुम पटने पहुँच कर मीर जाफ़र के एक भाई महमूद अमीन खाँ के साथ मिलकर रामनारायन को गद्दी से हटाने का प्रयत्न करो। कूट पटने पहुँचा, किन्तु उस थोड़ी सी सेना से रामनारायन को परास्त कर सकना नामुमकिन था । राजा रामनारायन को भी मेजर कूट के नाम क्लाइव के पत्र की कुछ खबर मिल गई थी। उसने धीरज से काम लिया । समझौते की बातचीत शुरू हुई । २२ अगस्त को रामनारायन के महल में सभा हुई। जितने इलज़ाम रामनारायन पर लगाए गए थे, उन सब को उसने शान्ति के साथ झूठा साबित किया । कूट और महमूद अमीन के साथ मीर जाफर का दामाद मीर कासिम भी मौजूद था। अन्त में एक ब्राह्मण को बुलाकर सव को मौजूदगी में राजा रामनारायन ने मीर जाफ़र को सूबेदार स्वीकार किया और उसकी वफादारी की कसम खाई। मीर कासिम और महमूद अमीन ने कुरान उठाकर अपने दिलों की सफाई का एलान किया और फिर वे तीनों तथा मेजर कूट सब एक दूसरे से गले मिले । मेजर कूट अपनी सेना सहित ७ सितम्बर __ को पटने से चल कर सात दिन में मुर्शिदाबाद वापस पहुंच गया। किन्तु क्लाइव की इच्छा अभी पूरी न हुई थी। राजा रामनारायन एक खासा ज़बरदस्त नरेश था। क्लाइव का असली उद्देश उसके