भीर जाफर १२६ किसी तरह का सुधार करना चाहता था तो उसे फौरन रोक दिया जाता था। मीर जाफर भी मसनद पर बैठने के चन्द महीने के अन्दर अपनी वेबसी को समझने लगा था और अनुभव करने लगा था कि अंगरेजों की नई मित्रता ने मुझे और मेरे देश दोनों को चुप- चाप नाग के लपेटो की तरह जकड़ लिया है। सिराजुद्दौला के साथ उसके विश्वासघात का फल अब मीर जाफर और उसको प्रजा दोनों को भोगना पड़ रहा था। सिराजुद्दौला की हत्या की अभी तीन साल भी पूरे न हुए थे। मीर जाफर, ने जो सन्धि अंगरेजों के साथ की बंगाल में दूसरी बगावत की तय्यारी ५ थी उसकी तमाम शतों को वह अक्षरशः पूरा कर चुका था। सन्धि से बाहर भी अनेक बेजा माँगे पैदर पै मोर जाफर के सामने पेश की जा चुकी थीं और जबरदस्ती पूरी कराई जा चुकी थीं। देश और प्रजा की यह हालत थी। इस स्थिति में अपने सच्चे मित्र मीर जाफर को लात मार कर उसकी जगह किसी और ऐसे मनुष्य को मसनद पर बैठाने के लिए, जिसके द्वारा बंगाल को और अधिक सफलता के साथ चूसा जा सके, अंगरेजों ने अब उस दूसरी बगावत के लिए तदबीरें शुरू कर दी जिसका इशारा ऊपर क्लाइव के एक पत्र में आ चुका है। मीर जाफ़र एक बहुत बड़ी रकम कम्पनी के नए गवरनर हॉलवेल को नकद भेंट कर चुका था। फिर भी हॉलवेल पहले दिन से इस दूसरी बगावत की धुन में था। मई सन् १७६० में गवरनर हॉलवेल और करनल केलो के बीच इस नए षड्यन्त्र के सम्बन्ध में
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