पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४१४

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भारत में अंगरेज़ी राज

१५६ भारत में अंगरेजी राज "x x x यह जगह पहलं बड़ी तिजारत की जगह थी, किन्तु अब नीचे लिखी काररवाइयों की उजह से अरबाद हो गई । कोई अंगरेज़ माल खरीदने या वेचने के लिए यहाँ किसी गुमाश्ते को भेजता है शौरन वह गुमाएता यह फर्ण कर लेता है कि यहाँ के किसी भी बादमी के हाथ जबरदस्ती अपना माल बेचने या उसका माल जबरदस्ती खरीदने का मुझे पूरा अधिकार है और यदि वह श्रादमी खरीदनं या बेचने की सामयं न रखता हो और इनकार करे तो फौरन् या तो उस पर कोड़े बरसाए जाते हैं और या उसे कैद कर लिया जाता है । यदि वह राजी हो जाचे नब भी केवल इतना ही काफी नहीं समझा जाता, बल्कि एक दूसरी ज़बरदस्ती यह की जाती है कि अर्भक चीजों की तिजारत का ठेका अपने ही हाथों में ले लिया जाता है, यानी जिन जिन चीजों की तिजारत अंगरेज़ करते हैं उनकी तिजारत किसी दूसरे को करने नहीं दी जाती और न किसी दूसरे के पास से किसी को खरीदने दिया जाता है। xxx और फिर अंगरेज़ समझते हैं कि कम से कम जो हम कर सकते हैं वह यह है कि दूसरा सौदागर जिस दाम पर कोई चीज़ ख़रीदता है, हम उसी चीज़ को उससे बहुत कम दाम पर खरीदें। अकसर ये लोग दाम देने से इनकार कर देते हैं और मैं दखल देता हूँ तो फ़ौरन् मेरी शिकायत होती है।"* १० वीं सदी के पिछले पचास साल में बंगाल भर के अन्दर यह ज़बरदस्त जुल्म सब जगह फैला हुआ था। तिजारत के बहाने । ने अब हम इंगलिस्तान के प्रसिद्ध नीतिज्ञ और वक्ता एडमण्ड बर्क के कुछ वाक्य इसके विषय में देते हैं । बर्क ने इंगलिस्तान की पालिमेण्ट के सामने कहा था:-

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