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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज जैन जगतसंठ, जो छ साल पहले सिराजुद्दौला के पतन में अंगरेजों का सहायक हुआ था, अब फिर इस नई साजिश में शामिल था। पता चलते ही मीर कासिम ने जगतसेठ और उसके भाई स्वरूप- चन्द दोनों को मुंगेर बुलाकर नजरबन्द कर दिया। ये दोनों भाई मीर कासिम की प्रजा थे। अंगरेजों को इस पर एतराज़ करने का कोई हक न था, किन्तु वन्सीटॉर्ट ने इस पर भी एतराज़ किया। इस बीच ऐमयाट और हे दोनों दृत मुंगेर पहुँच गए। २५ मई सन् १७६३ को इन दोनों ने कम्पनी की ओर से ११ नई माँगे लिख कर मीर कासिम के सामने पेश की-(१) यह कि अंगरेज़ कौन्सिल ने निजारती महसूल और एजन्टों के बारे में जो कुछ तय किया है, नवाब उसे ज्यों का त्यों लिखकर स्वीकार कर, (२) यह कि नवाब अपनी प्रजा यानी देशी व्यापारियों पर नए सिरे से महसूल लगावे और अंगरेजों की विना महसूल तिजारत जारी रहे, (३) यह कि अंगरेजों और उनके जिन जिन आदमियों को नई आज्ञा से व्यापारिक नुकसान हुआ है, नवाब उन सब का हरजाना पूरा करे, (४) यह कि नवाब अपने उन सब कर्मचारियों को जिन्हें अंगरेज़ कहें दंड दे। इत्यादि, इत्यादि । निस्सन्देह कोई स्वाभिमानी शासक इन शर्तों को स्वीकार न कर सकता था। ऐमयाट का व्यवहार नवाब के हथियारों से भरी । साथ अत्यन्त रूखा और धृष्टतापूर्ण था। यहाँ हुई किश्तियाँ " तक कि उसने मीर कासिम की शिकायतें सुनने तक से इनकार कर दिया। वास्तव में अंगरेज युद्ध चाहते थे और