पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४४५

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मीर का़सिम

मीर कासिम १८५ ऐमयाट से खाना खाने के बहाने किनारे पर आने की प्रार्थना की। ऐमयाट ने इनकार किया और उसकी किश्तियाँ बीच धार से चलती रहीं। एक दूसरा उच्च कर्मचारी भेजा गया, जिसने किनारे से फिर कहा कि खाना तैयार है और यदि आप सेनापति मोहम्मद तकी खाँ की प्रार्थना स्वीकार न करेंगे तो उन्हें दुख होगा। ऐभयाट ने फिर इनकार कर दिया। इसके बाद किनारे के अफसरों ने किश्तियों को रुकने का स्पष्ट हुकुम दिया। जवाब में एमयाट ने वहीं से किनारे की ओर गोलियों की बौछार शुरू कर दी। नवाब के श्रादमियों ने अब ज़बरदस्ती किश्तियों पर पहुँच कर बदला लिया । उस लड़ाई में पेमयाट का भी वहीं पर काम तमाम होगया। २८ जून को मीर कासिम ने वन्सीटॉर्ट और उसकी कौन्सिल के नाम यह पत्र लिखा :- मीर कासिम की "x x x रात को डाकू की तरह मिस्टर एलिस प्रजा के साथ जल्म और ज्यादतियां ने ने पटने के किले पर हमला किया, वहाँ के बाज़ार को __और तमाम व्यापारियों और नगर के लोगों को लूटा और सुबह से तीसरे पहर तक लूट और कव्व जारी रक्खी । x x x चकि आप लोगों ने बेइंसाफी और जुल्म के साथ शहर को रौंद डाला है, लोगों को घरबाद किया है और कई लाख का माल लूट लिया है, इसलिए अब इंसान यह है कि कम्पनी ग़रीबों का नुकसान भर दे, जैसा पहले कलकत्ते में हो चुका है। आप ईसाई लोग विचित्र दास्त निकले। आपने सन्धि की, उस पर ईसा मसीह के नाम से कसम खाई । इस शर्त पर कि आपको सेना सदा मेरा साथ देगी और मेरी सहायता करेगी, आपने अपनी सेना के खर्च के लिए