पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४४९

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मीर का़सिम

w मीर कासिम १८६ ज़रा भी हानि पहुँचा सके। दूसरी ओर एक साहसी और परहेज़ गार मुसलमान सेनापति मिरज़ा नजफ़ खाँ रोज़ रात के पिछले पहर उसी दलदल के रास्ते श्राकर अंगरेज़ी सना पर धावा करता और अनेकों को खत्म कर और बहुत सा माल लंकर उसी रास्ते लौट जाता । अंगरेज़ी सेना किसी तरह उसका पीछा न कर पाती थी। लड़ाई का सामान भी अंगरेजों की निस्बत मीर कासिम की सेना के पास कहीं अच्छा था । अंगरेज़ इतिहास लेखक ब्रूम लिखता है कि भारत की बनी हुई जो बन्दूके इस समय मीर कासिम की सेना के पास थीं वह अंगरेजी सेना की, इंगलिस्तान की बनी हुई बन्दूकों से धातु, बनावट, मज़बूती, उपयोगिता इत्यादि सव बातों में कहीं वढ़िया थीं ।* ईमानदारी की लड़ाई में अंगरेज किसी तरह मीर कासिम पर विजय न प्राप्त कर सकते थे। __मीर कासिम की सेना का एक खास दोष, जो उसके लिए घातक सिद्ध हुआ, यह था कि उसने अनेक मीर कासिम के यूरोपियन और आरमीनियन ईसाइयों को अपनी ईसाई अफसरों की नमकहरामी सेना के बड़े बड़े ओहदों पर नियुक्त कर रक्खा था। ईसा की ११ वीं सदी से लेकर जव कि यूरोप की कई ईसाई शक्तियों ने मिल कर पहली वार मुसलमानों से जैरुसेलम ( बैतुलमुकद्दस ) छीनना चाहा, आज तक हज़रत ईसा और हजरत मोहम्मद के अनुयायियों के बीच प्रायः लगातार संग्राम होते रहे हैं । ईसाई ताक़तो ने अनेक मुसलमान राज्यों के स्वतन्त्र

  • History of the Bengal Army, by Broome, p 351