पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४६७

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२०५
फिर मीर जा़फर

फिर मीर जाफर २०५ अगर (खुदा न करे ) आए सरकशी और नाफरमानी करते रहे तो इन्साफ की तलवार बगावत करने वालों के सरों को खा जायगी और आप शहन- शाह की खफ़गी के भार को महसूस करेंगे, जो खुदा के कहर का एक नमूना है; फिर बाद में आपके अपनी ग़लती मानने या दरवास्तें देने से भी काम न चलेगा, क्योंकि शुरू ज़माने से बादशाह श्रापकी कम्पनी के साथ काफी ग्ाियतें करने रहे है। इसलिए मैने आपको लिख दिया है, आप जैसा मुनासिब समझिए वैसा कीजिए और मुझे जल्दी जवाब दीजिए।" निस्सन्देह मुगल साम्राज्य के वजीर की हैसियत से शुजाउद्दौला का पत्र उचित, उदार और न्यायानुकूल था। किन्तु इस पत्र से यह भी ज़ाहिर है कि उस समय के भारतीय शासकों को पाश्चात्य कूटनीति का पूरा पता न था । ____ इस पत्र को पाते ही और यह सुनते ही कि सन्नाट और शुजा- उद्दौला को साथ लेकर मीर कासिम बिहार लौटने वाला है, अंगरेज डर गए, । 'सीअरुल मुतावरीन' में लिखा है :- _ "शुजाउद्दौला के बल की ख्याति और उसकी सेना की अधिकता और वीरता का हाल सुनकर वे डर गए और उन्होंने अपने आपको मैदान में शुजाउद्दौला का मुकाबला कर सकने के नाकाबिल समझा।" मीर कासिम के प्रान्त छोड़ने के समय अंगरेजों ने अजोमाबाद (पटना) से आगे बढ़कर सोन नदी को पार कर बक्सर में अपनी छावनी डाल ली थी। अब फिर फुर्ती के साथ बक्सर की छावनी को छोड़ कर सोन पार कर वे अज़ीमाबाद की चहारदीवारी के अन्दर आ गए।