फिर मीर जाफर २११ शुजाउद्दौला को अपनी सेना सहित मैदान से पीछे हट जाना पड़ा, जिसमें कहा जाता है उसके हजारों सैनिक गंगा की दलदल में फंस कर रह गए। मीर कासिम जानता था कि यदि मैं अंगरेजों के हाथों में पड़ गया तो जो व्यवहार उन्होंने सिराजुद्दौला के मार कासिम की साथ किया उससे बेहतर सलक की मुझे अंगरेजो 3 साशा नहीं हो सकती। इसलिए वह बक्सर से भाग कर सीधा इलाहाबाद पहुँचा। वहाँ से चल कर उसने बरेली में दम लिया और अन्त को १२ साल से ऊपर एक गृह विहीन जलावतन की तरह जगह जगह मुसीबते उठाकर सन् १७७७ ई० में दिल्ली में उसकी मृत्यु हुई । निस्सन्देह भारत की स्वाधीनता के लिए अपने आप को मिटा देने वालों में मीर कासिम का नाम सदा के लिए स्मरणीय रहेगा। सम्राट शाहआलम ने लड़ाई के समान होते ही शुजाउद्दौला का साथ छोड़कर अंगरेजी सेना के साथ डेरा डाला । अंगरेजों ने फौरन उसके सामने हाजिर होकर उसका बाकायदा आदर मान किया और उसे अपना सम्राट कह कर सलाम किया। सम्राट ही के साथ अंगरेजों ने गंगा को पार किया और वहाँ से शुजाउद्दौला के दीवान वेनीबहादुर को बुलवाकर शुजाउद्दौला के साथ सुलह की बातचीत शुरू की। अंगरेजों ने दीवान बेनीवहादुर को यह विश्वास दिलाने की कोशिश की कि कम्पनी ने अपने मुलाजिमों को आज्ञा दे दी है कि हिन्दोस्तान के अन्दर अब और नए इलाके फतह न
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