सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/५०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२३९
वारन हेस्टिंग्स

वारन हेस्टिग्स २३६ इस समय तक बंगाल के अन्दर कुछ इलाका, बंगाल, बिहार और उड़ीसा तीनो प्रान्तों की दीवानी, और थोड़े थोड़े इलाके मद्रास और बम्बई की ओर कम्पनी को मिल चुके थे। मुर्शिदाबाद का मसनद-नशीन नवाब केवल एक अधिकार शून्य खिलौना था, और तीनों प्रान्तों का सारा शासन पटने में महाराजा शिताबराय, मुर्शिदाबाद में मोहम्मद रजा खां और उड़ीसा मे जसारत ख़ॉ इन तीन नायवों के हाथों में था, जो हर तरह अंगरेजों के हाथों की कठपुतली थे। निस्सन्देह इन दोनों नायवों ने कम्पनी के ऊपर बेशुमार उपकार किए । अंगरेज़ो और शुजाउद्दौला के युद्ध के समय शिताबराय ने कदम कदम पर अंगरेजो का साथ दिया था और उसी सं अंगरेजों का अधिकांश काम निकला। 'सीअरुल-मुताखरीन' में लिखा है कि आए दिन कम्पनी के कर्मचारी एक न एक अंगरेज को शितावराय के पास भेजते रहते थे और बिना किसी वजह यह लिख भेजते थे कि इसे इतनी रकम दे दी जावे । शितावराय ने इन अंगरेजों को देने के लिए रुपए वसूल करने के अनेक उपाय निकाल रक्खे थे, जिनमे से एक उपाय यह था कि ऐसे मौकों पर वह अपने खास ख़ास जागीरदारों, माफ़ीदारों इत्यादि को उनके पट्टो और सनदों सहित वुलवा भेजता था; फिर इल वहाने से कि अमुक अंगरेज़ आपके कागज़ देखना चाहता है, उनले कागज़ लेकर अपने किसी कर्मचारी को दे देता था और जब तक एक खास रकम उनसे वसूल न कर लेता था, कागज वापस न