२६० मारत में अंगरेजो राज जाती थी और उसके साथ साथ मार्ग भर में एलान बँटते जाते थे, जिनमें महाराष्ट्र की प्रजा से राबोवा को सहायता करने के लिए प्रार्थना की गई। इसी बीच मॉस्टिन पूना में अचानक बीमार पड़ गया, उसे बम्बई लौट आना पड़ा और १ जनवरी सन् १७७६ को उसको मृत्यु हो गई। खण्डाला तक बम्बई की इस सेना को किसी ने न रोका, किन्तु नाना असावधान न था। उसके गुप्तचरों का सगंठन इतना अच्छा था कि पूना में बैठे हुए उसे भारत भर की राजनैतिक हालत का ठीक ठीक पता रहता था। सींधिया और होलकर दोनों उस समय पूना में थे ! नानाने उन्हें सेनापति नियुक्त करके उनके अधीन अंग- रेज़ों के मुकाबले के लिए सेना रवाना की। मराठे युद्ध विधा में अत्यन्त होशियार थे। वे धीरे धीरे पीछे हटते हुए अंगरेजी सेना को पूना से १८ मोल दूर तालेगाँव की 1 सालेगाँव के मैदान तक ले आए। ६ जनवरी र लड़ाई सन् १७७६ को अंगरेज़ी सेना तालेगांव पहुँचो। वहाँ पहुँचते ही अंगरेजो ने अचानक अनुभव किया कि एक विशाल मराठा सेना ने उन्हें तीन ओर से घेर रखा था। इस पर वे इतने भयभीत हो गए कि उन्हें फौरन पीछे हटने के सिवा कोई चारा दिखाई न दिया। ११ जनवरो के ११ बजे रात को अंगरेजी सेना ने पीछे हटना
पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/५६६
दिखावट