भारत में अंगरेजी राज को पूरिमपाक में टीपू और करनल बेली की सेनाओं में लड़ाई हुई। जनरल मनरो ने अपना एक दस्ता बेली पूरिमपाक की की सहायता के लिए भेजा। उधर हैदर भी लड़ाई रातों रात चल कर टीपू की सहायता के लिए आ पहुँचा । मैदान खूब गरम हुआ, टीपू की सेना ने सामने और पीछे दोनों ओर से अंगरेज़ी सेना पर हमला करके और उनके बीच में घुसकर अंगरेजी सेना का संहार शुरू किया। यहाँ तक कि अंगरेजी सेना का तोपखाना बेकार हो गया। अन्त में उनके तोपखाने में आग लग गई और अंगरेज़ी सेना को बुरी तरह हार खानी पड़ी। लिखा है कि इस लड़ाई में कम्पनी के हजारों भारतीय सिपाहियों के अलावा सात सौ अंगरेज़ मारे गए और दो हजार को जिनमें स्वयं करनल बेली और सर डेविड बेयर्ड जैसे अफसर शामिल थे हैदर ने गिरफ्तार कर लिया। अंगरेजों के लिए पूरिमपाक की हार अत्यन्त अशुभसूचक और लज्जाजनक थी। हैदर ने अपनी राजधानी श्रीरङ्गपट्टन में दरियादौलत नामक बाग की दीवारों पर इस लड़ाई का एक विशाल सुन्दर चित्र खिंचवाया जो अभी तक मौजूद है। जनरल मनरो इस समय अपनी सेना सहित गञ्जी स्थान में ठहरा हुआ था । विजयी हैदर ने गुण्दूर की अरकाट की विजय - अंगरेजी सेना को खत्म करके गञ्जी की ओर रुख किया। हैदर अभी गञ्जी से कुछ मील दूर ही था कि करनल बेली की पराजय का हाल सुनकर और हैदर के सवार, पनी ओर .
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