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३५०
भारत में अंगरेज़ी राज

३५० भारत में अगरेजी राज ही हैदरअली की मौत का पैगाम साबित हुआ। जब हैदरअली को अपने रोग के असाध्य होने का पता लगा, उसने अपने तमाम मन्त्रियों और सरदारों को बुलाकर राज्य के कार्य के विषय में अन्तिम आदेश दिए ! एक संना पाँच हज़ार सवारों को उसने मद्रास की ओर रवाना की। अपनी विशाल सेना के हर सिपाही और मुलाज़िम को एक एक महीने की तनखाह बतौर इनाम के दिलवाई और टीपू को, जो उस समय एक दूसरे मैदान में था, बुलवा भेजा। हैदरअली की आयु उस समय साठ साल से कुछ ऊपर थी। डर था कि हैदरअली की मृत्यु के समाचार से हैदरअली के हिन्दू उसकी विजयी सेना का उत्साह न टूट जावे। हैदरअली के दोनों मुख्य मंत्री हिन्दू थे जिनके नाम पूनिया और कृष्णराव थे। दन दोनों वफ़ादार मन्त्रियों ने हैदरअली की मृत्यु को बड़ी होशियारी के साथ उस समय तक शत्रु और अपनी सेना दोनों से छिपाए रक्खा जिस समय तक कि हैदरअली के बड़े बेटे फ़तहअली टीपू ने अरकाट में पहुँच कर अपने बाप की जगह न ले ली। टीपू के आने पर सुलतान हैदरअली का शव मैसूर की राजधानी श्रीरङ्गपट्टन भेजा गया, जहाँ बड़े समारोह के साथ उसे लाल बाग में दफ़न किया गया, और टीपू ने पिता की कब्र के ऊपर एक सुन्दर और आलीशान समाधि बनवाई। टीपू अपने बाप के समान वीर, किन्तु अभी नातजरुबेकार था मंत्री