पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/६३५

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हैदरअली

हैदरअली ३५५ हैद्रअली अपने दरवार के अन्दर हिन्दू त्योहारों को बड़े समारोह के साथ मनाया करता था। विशेषकर हिन्दू त्योहार दशहरे के मौके पर उसके दरबार में दस दिन तक लगातार जश्न रहता था, रोज़ शाम को आतिशबाजी छुटती थी, साँडो, बारहसींगो, हाथियों और शेरों की लड़ाइयाँ होती थीं, कुश्तियां होती थीं, दावतें होती धों; इनाम और इकराम दिए जाते थे, गरीबों को भोजन वस्त्र और धन बाँटा जाता था। मज़हब के नाम पर किसी तरह के भी लड़ाई झगड़ों को वह बड़ी नफ़रत की नज़र से देखता था। एक बार शिया सुभा उसके राज में कहीं पर शिया और मुनियों में झगड़ा हो गया। ज़बान से बढ़ते बढ़ते मामला खार और भालों तक पहुँच गया। हैदर के कानों तक ख़दर पहुंची, उसने दोनों पक्ष के लोगों को अपने सामने बुलवाया और उनसे पूछा- “यह क्या बेवकफ़ी का झगड़ा है, और तुम लोग कुत्तों की तरह एक दूसरे पर क्यों भोंकते हो?" दोनों ने अपनी अपनी बात कह सुनाई, मालूम हुआ कि झगड़ा केवल इस बात पर है कि हज़रत मोहम्मद के कुछ उत्तराधिकारियों के विषय में शियों की एक राय है और सुन्नियों की दूसरी । हैदरअली ने उनसे पूछा--"जिन व्यक्तियों के बारे में तुम्हारा झगड़ा है क्या वे जिन्दा हैं ?" जवाब मिला, "नहीं।" इस पर हैदरअली ने उनसे कहा-"जो लोग मर चुके, उनकी बाबत अब झगड़ा करना हिमाकत है," और दोनों को आगाह कर दिया कि अगर तुम लोग फिर कभी अपना और