लॉर्ड कॉर्नवालिस ३७६ मराठों और निजाम तीन तीन ताकतों की सेनाओं द्वारा कई तरफ़ से घिर गया और दूसरी ओर उसकी अपनी सेना में विश्वासघातक पैदा होगए। इस पर भी कॉर्नवालिस का काम इतना आसान न था । टीपू ने बोरता के साथ अपने तीनो शत्रों का “शोकजनक मुकाबला किया। कई महीने युद्ध जारी रहा। संहार" उस युद्ध की अनेक लड़ाइयों को विस्तार के साथ बयान करने को आवश्यकता नहीं है। किन्तु अकेला टीपू इस तरह के तीन शत्रुओं का मुकाबला और इन हालतों में कब तक कर सकता था ? अन्त में टीपू को पीछे हटना पड़ा, यहाँ तक कि बंगलोर का नगर अंगरेजों के हाथों में आगया। बंगलोर विजय के बाद कॉर्नवालिस की आज्ञा से उसकी सेना ने बंगलोर निवासियों के साथ जो व्यवहार किया उसे इतिहास लेखक मिल "शोकजनक संहार" कह कर बयान करता है। बंगलोर के नगर को जी भर के लूटा गया । बंगलोर लेने के बाद कॉर्नवालिस से मैसूर की राजधानी श्रीरंगपट्टन पर चढ़ाई की। जिस समय अंगरेजी भारगपट्टन पर सेना राजधानी के निकट पहँची, टीपू ने अपने अंगरेजों की चढ़ाई एक दूत के हाथ अनेक ऊँट कलौ से लदवा कर सुलह की इच्छा के चिह्न रूप कॉर्नवालिस की सेवा में भेजे, किन्तु
- “Deplorable cernage ' -Mill