सर जॉन शोर ४१५ स्वीकार कर लीं। इसके सात महीने बाद पेशवा माधोराव नारायन की मृत्यु हुई। मजबूर होकर निजाम ने कुर्दला की लड़ाई के बाद सर जॉन शोर को लिखा कि कम्पनी की सेना मेरे यहाँ से हटा ली जाय । साथ ही उसने एक फ्रान्सीसी अफसर मो० रेमों ( Raymond ) को अपने यहाँ दूसरी सेना तैयार करने के लिए नौकर रक्खा और अपनी हिफाजत के लिए रेमो के अधीन कुछ सेना अपने सरहदी इलाकों में नियुक्त कर दी। सर जॉन शोर ले तुरन्त निजाम की इन कारग्वाइयों पर एतराज़ किया और हैदराबाद के रेजिडेण्ट की मारफत निज़ाम को धमकी दी कि यदि आपने अपने सरहदी इलाकों से नई फ़ौज न हटा ली तो कम्पनी उसके मुकाबले के लिए अपनी सेना रवाना करेगी। किन्तु निजाम ने इन धमकियों की कुछ परवा न की। अंगरेजों को डर हो गया कि कहीं निज़ाम मराठों या टीपू के साथ मिलकर अंगरेजों के विरुद्ध खड़ा न हो जावे। हैदराबाद के अंगरेज रेजिडेण्ट ने तुरन्त निज़ाम के एक पुत्र श्रालीजाह को भड़काया। आलोजाह ने अपने पिता के खिलाफ बगावत खड़ी कर दी। बेटे को वश में करने के लिए निज़ाम को मरहदी इलाके से अपनी फौज वापस बुलानी पड़ी। आलीजाह कैद कर लिया गया और बगावत शान्त हो गई। किन्तु निज़ाम इस छोटी सी घटना से इतना डर गया कि उसने कम्पनी की फ़ौज को फिर अपने यहाँ रखना स्वीकार कर लिया और उसकी
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