अंगरेजों की साम्राज्य पिपासा ४२७ प्रारम्भ हुआ। सन् १७९२ में क्रांस ने अपने स्वेच्छाचारी और अन्यायी राजा सोलहवें लूई को गद्दी से उतार कर अपने यहाँ प्रजातन्त्र राज ( रिपब्लिक ) कायम किया। २१ जनवरी सन् १७६३ को सोलहवे लूई को फाँसी पर चढ़ा दिया गया। फ्रांस ही से "स्वतन्त्रता, समता और बन्धुत्व” ( Liberty. Equality and Fraternity ) इन तीन शब्दों की पुकार उठी और चन्द साल के अन्दर ही ये शब्द सारे यूरोप में इस सिरे से उस सिरे तक गूंजने लगे। फ्रांस की इस महान क्रान्ति के विषय में इतालिया के आदर्श देशभक्त महात्मा जौज़फ़ मैजिनी ने लिखा है- "ढाई करोड मनुष्य केवल किसी शब्द, किसी थोथे वाक्य या छाया के पीछे इस तरह एक दिल होकर खड़े नहीं हो सकते मैज़िनी के और न आधे यूरोप को अपनी आवाज से जगा सकते विचार हैं। फ्रांस की राज्य क्रान्ति खतम हो गई यानी उसका ऊपरी जोश खरोश जाता रहा, उसका बाहरी रूप नष्ट हो गया, जिस तरह कि हर चीज़ का बाहरी रूप अपना काम पूरा करके नष्ट हो जाता है, किन्तु उस क्रान्ति का उसूल, उसके भीतर का सिद्धान्त जीवित है। वह सिद्धान्त अपने उस समय के समस्त अस्थायी आच्छादनों यानी बाहरी रूपों से अलग होकर अब सदा के लिए हमारे मानसिक आकाश में ध्रुव तारे की तरह चमक रहा है; उसकी शुमार मानव जाति की विजयों में की जाती है। "हर महान सिद्धान्त अमर है। फ्रांस की राजक्रान्ति ने मनुष्य मात्र अधिकार, स्वतन्त्रता और समता के भावों को फिर से मनुष्य की आत्मा वे अन्दर प्रज्वलित कर दिया, अब यह ज्वाला कभी किसी के बुझाए नहीं बुभ
पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/७११
दिखावट