पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/११४

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कम इतना तो हुआ कि आराम से बैठ तो सकूँगा! बादशाह उसकी दबंगता पर दंग होगया और फिर उसे बहाल कर दिया। यह हुक्म सुनते ही वह उठ खड़ा हुआ और कोर्निस बजा लाया। एक बार शाह गोलकुण्डा का एक मन्त्री दरबार में हाज़िर था, बादशाह ने उससे मजाक किया और अपने पीछे खड़े ख़ास बरदार की ओर इशारा करके पूँछा--क्या तुम्हारे आक़ा का क़द इस आदमी के बराबर है? उसने कहा--जहाँपनाह मेरा आक़ा क़द में हुजूर से चार अंगुल ऊँचा है! बादशाह बहुत खुश हुआ, और दरबार में उसकी स्वामि-भक्ति की बहुत तारीफ़ की। तथा शाहे गोलकुण्डा के जुम्मे तीन साल का कर जो नौ लाख रु० के लगभग था छोड़ दिया जौर उसे पान तथा एक घोड़ा इनाम दिया।

हम यह पीछे कह चुके हैं कि बादशाह अपने सरदारों और सेवकों की सम्पत्ति के मालिक होते थे। एक सिपहसालार बड़ा धनवान् समझा जाता था। पर वह अपने पीछे बादशाह को कुछ सम्पत्ति छोड़ जाना नहीं चाहता था। जब वह मर गया तो राज-कर्मचारी उसकी सम्पत्ति पर क़ब्जा करने को गये, तो देखा नौ बड़े-बड़े भारी और मजबूत सन्दूकों में सोने की मेखों के ताले लगे हैं और सब तालों पर सील मोहर लगी हैं। उस पर एक-एक चिट भी चिपकी हुई है कि यह सब बादशाह को समर्पित है। जब वे भरे दरबार में खोले गये तो किसी में सींग और किसी में पुराने जूते थे। बादशाह यह देख अत्यन्त लज्जित हुआ और कहा--मालूम होता है इसका बाप कसाई और माँ चमारिन थी, इन्हें ले जाकर उसके साथ दफ़न करदो।

इस प्रकार जो हक मिलता था। उसे बादशाह ख़जाने में नहीं भेजता था। किन्तु इसके लिये दो पृथक ख़जाने थे। एक सोने के लिये व दूसरा चाँदी के लिये। दो बड़े-बड़े हौज थे। जिनकी लम्बाई सत्तर फुट और गहराई तीस फुट थी। बीच-बीच में सुन्दर संगमरमर के स्तून थे। इनमें सोने वाले को ख़जीरा और चाँदी वाले को भौरा कहा जाता था। उनको चोर दरवाजों से बन्द किया जाता था। इन हौजों पर बड़े-बड़ कमरे थे जो खर्च होने वाले ख़जाने के तौर पर काम में लाये जाते थे। यह जबरदस्त ख़जाना