कुस्तुन्तुनिया इन धर्मान्ध झगड़ों का केन्द्र था, जहाँ अनेक पन्थ और दल बन गये थे।
ये लोग परस्पर अत्यन्त घृणा-भाव रखते थे। अरब उन दिनों स्वतन्त्रता की अपरिचित भूमि थी, जो भारत-सागर से लेकर शाम देश के मरुस्थल तक फैली हुई थी। यह भगोड़ों और झगड़ालू ईसाइयों का आश्रय-स्थल हो रहा था। अरब के मरुस्थल ईसाई संन्यासियों से भर गये थे और वहाँ के बहुतेरे लोगों ने उनके पन्थ को स्वीकार कर लिया था। हवश देश के ईसाई राजे, जो नेस्टर धर्म को मानते थे, अरब के दक्षिणी प्रान्त यमन पर अधिकार रखते थे।
अरब एशिया के दक्षिण-पश्चिम कोण पर एक मरुस्थल है। इसकी लम्बाई १,४०० मील और चौड़ाई ७०० मील है। जन-संख्या ५० लाख के लगभग है। देश भर में पहाड़, पहाड़ी, ऊजड़-जंगल और रेत के टीले हैं। जल का भारी अभाव है। खजूर ही इस देश की न्यामत है। अधिकांश अरबवासी, जिन्हें खानाबदोश कहते हैं, किसी पहाड़ी नाले के पास ठहर जाते हैं और जब चारापानी का सहारा नहीं रहता तो अन्यत्र चल देते हैं। इस देश में गर्मी इतनी पड़ती है कि दोपहर के समय हिरन अन्धा हो जाता है। आँधियाँ ऐसी आती हैं कि बालू के टीले के टीले इधर से उधर उड़ जाते हैं। यदि यात्रियों का कोई समूह इनके चपेट में आगया तो उसकी खैर नहीं। कहीं-कहीं सर्दी भी बड़े कड़ाके की पड़ती है। सर्दी में वर्षा भी होती है। यही वर्षा का जल नालों और गड्ढों में संचित करके पिया जाता है।
अरब के घोड़े संसार में प्रख्यात हैं। यह पशु पथरीले स्थान पर बड़ा काम आता है, पर रेतीले भागों के काम की चीज़ तो ऊँट है। यह न केवल सवारी के काम आता है, प्रत्युत् इसका माँस और दूध भी बहुतायत से काम में लाया जाता है। लोग खजूर का गूदा स्वयं खाते और गुठली ऊँटों को खिलाते हैं। अब उनकी दशा में कुछ परिवर्तन हो गया है।
बसरा नगर के नेस्टर मठ के महन्त वहीरा ने मुहम्मद को नेस्टर मत के सिद्धान्त सिखाये। इस विद्वान् संन्यासी के सदुपदेश से मुहम्मद के मन में मूर्ति पूजा से बहुत घृणा हो गई।
जब मुहम्मद मक्का लौटा, तो वह उन्हीं ईसाई संन्यासियों की भाँति जङ्गल में कुटी बनाकर रहने को हीरा नामक पहाड़ी की एक गुफ़ा में, जो