१८३ . - उस दिन "उस दिन पुरानी रीति के अनुसार शाही खानदान के तमाम व्यक्ति भिन्न-भिन्न रीति से तोले जाते हैं। प्रथम, हर प्रकार की धातुओं के साथ, जैसे सोना, चाँदी, ताँबा-आदि । फिर विविध प्रकार के वस्त्रों के साथ, जैसे ज़रबफ्त, कलाबत्तू , मखमल-आदि। तत्पश्चात् भिन्न प्रकार के अन्नों के साथ जैसे गेहूँ, चावल, जौ-आदि। इससे अभिप्राय यह होता है, कि पिछले साल और इस साल के वज़न में अन्तर मालूम हो जाय । वे तमाम वस्तुएँ ग़रीबों में दान कर दी जाती हैं, और प्रत्येक का वज़न उस दिन की पुस्तक में दर्ज कर लिया जाता है। बादशाह को उस दिन खूब फायदा होता है क्योंकि महल के प्रत्येक व्यक्ति और दरबार के अमीरों का कर्तव्य है कि उसे भेंट दें। उस दिन को नौरोज, यानी नयी साल कहते हैं । बादशाह भी इस दिन अनेक रीतियों से अपनी कृपायें प्रदान करता है। जैसे, वह कई जगह नये हाकिम नियत करता है, कई जगह पुरानी बातों में परिवर्तन करता है, और बहुत-से लोगों को हाथी, घोड़े, जवाहरात, सरोपा-आदि देता है । जब वह सफ़र में हो, तो वैसी शान से उत्सव नहीं होता, न तख्त लाये जाते हैं। क्योंकि वह दिल्ली के किले के बाहर नही लाये जाते। "एक और त्यौहार भी है, जो बड़ी शान से मनाया जाता है । इसे ईद-कुरबानी, यानी कुर्बानियों का त्यौहार कहते हैं, जो इनके रोज़ों की समाप्ति पर होता है, और उस दिन बादशाह नौ बजे बड़े ठाठ-बाट के साथ महल के बाहर निकलकर मस्जिद में जाता है । वहाँ पर काजी अज़म सात नम्बर के जीने के पास खड़ा हुआ, उसकी प्रतीक्षा कर रहा होता है। पहली रस्म हो चुकने के पीछे काजी बड़ी ऊँची आवाज से तैमूरलंग से आरम्भ करके तमाम मुग़ल-बादशाहों के नाम और उनकी प्रशंसा बड़ी सफाई के साथ और बढ़ा-चढ़ाकर सुनाता है। इसी तरह जब वर्तमान बादशाह का नाम आता है, तो वह उसकी प्रशंसा में बहुत-कुछ कहता है, जिसके साथ खुशामद की भारी मात्रा होती है। वह बादशाह को अनेक प्रकार के धार्मिक खिताब देता है, और अन्त में उसके गुणों की तारीफ़ के पुल बाँध देता है, तथा उसकी बहादुरी और न्याय की सराहना करता है। इस फतवे के पढ़ते समय यह अनिवार्य होता है, कि वह खूब सावधान रहे, और अपने हृदय की सभी बातों को बयान कर दे; क्योंकि जरा-सी भी
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