२११ गद्दी पर बैठाया। यह अभागा ५ वर्ष गद्दी पर रह पाया, और जब तक रहा, तब तक दोनों सैयदों के हाथ की कठपुतली बना रहा। इसके राज्य- काल में दक्षिण बिल्कुल हाथ से निकल गया, और उसे मरहठों का करद राज्य स्वीकार कर लिया गया। इसी बादशाह ने अंग्रेजों को बङ्गाल में बिना चुङ्गी व्यापार करने का अधिकार दे दिया। सिक्ख कैदियों सहित दिल्ली लाये गये, और अति क्रूरता से मारे गये । अन्त में दक्षिण का सैयद सूबेदार १०००० मरहठों को बालाजी विश्वनाथ पेशवा की अध्यक्षता में चढ़ा लाया, जिनके हाथों यह बादशाह मार डाला गया। इसके बाद सैयदों ने एक और व्यक्ति को बादशाह बनाया, जिसे क्षय- रोग था। तीन मास ही बादशाह रहकर वह मर गया। फिर एक और व्यक्ति बादशाह बना। वह एक वर्ष राज्य करके मर गया। इस बीच में मुग़ल-प्रान्त एक-एक करके खत्म हो गये । तब सैयदों ने बहादुरशाह के एक पोते मुहम्मदशाह को गद्दी पर बैठाया, पर सैयदों के उपद्रव से तंग आकर इसने दो पराक्रमी सरदार सआदतखाँ और आसफजाह की सहायता से उन्हें मार डाला। इसके इनाम में सआदतखाँ को अवध की नवाबी दी गई, जिसे उस सरदार ने जल्द ही एक स्वतन्त्र राज्य के रूप में सम्पादित कर लिया। तब से किसी ने भी अवध को फिर क़ब्जे में करने की चेष्टा नहीं की, और १३० वर्ष तक सआदत के वंशधर वहाँ की बादशाहत भोगते रहे । इसके दो वर्ष बाद आसफजाह ने, जो इसका मन्त्री था, मन्त्री-पद से इस्तीफ़ा दे दिया, और दक्षिण में जाकर हैदराबाद को राजधानी बना, नया राज्य स्थापित कर लिया। १० वर्ष तक वह मरहाठों से लोहा लेता रहा और एक विख्यात राज्य पैदा कर दिया। शिवाजी के वंशधर अब मुग़ल-सम्राट् से कर ग्रहण करते थे। शिवाजी के समय में राज्य-सत्ता बालाजी विश्वनाथ के हाथ में पहुँच गई थी, जो पेशवा के नाम से प्रख्यात हुए। दूसरा पेशवा बाजीराव इतना सशक्त हुआ कि उसके समय में महाराष्ट्र-शक्ति उन्नति के उच्च शिखर पर पहुँच गई। शीघ्र ही मरहठों के तीन बड़े राज्य स्थापित हो गये । सिन्धिया ग्वालियर में, होल्कर इन्दौर में, और गायकवाड़ बड़ौदे में तीनों सरदार शूद्र से क्षत्रिय-वर्ण में परिणित हुए । अन्त में मराठों - 1
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