२३२ - - 1 नाराज कर दिया । अन्त में ईस्ट-इण्डिया कम्पनी ने बनारस में उन्हें नजर- बन्द कर दिया। वहाँ उन्होंने विद्रोह की तैयारियां कीं, तो अँगरेजों ने उन्हें कलकत्ता बुलाया। जब रेजीडेण्ट मि० चोरी उन्हें यह सन्देश देने गये, तो बात बढ़ चली और नवाब ने अपनी तलवार निकालकर साहब को क़त्ल कर दिया । मेम साहब भागकर बच गई। आप नैंहाल के जंगलों में भेष बदले मुद्दत तक फिरते रहे। अन्त में जब नगर के राजा के विश्वास- घात से गिरफ्तार किये गये, और लखनऊ में उन पर क़त्ल का मुकदमा चला । पर गवाह कोई न मिलने से फाँसी से बच गये । तब वे कलकत्त में कैद कर लिये गये । वहाँ वे २६ वर्ष की आयु में मृत्यु को प्राप्त हुए। इनके बाद नवाब आसफ़उद्दौला के भाई सआदतअलीखाँ गद्दीनशीन हुए। इस समय इनकी उम्र ६० वर्ष की थी। वे बड़े बुद्धिमान, दूरदर्शी, ईमानदार और योग्य शासक थे। पर, लोग इन्हें कंजूस कहा करते थे; क्योंकि वे आसफ़उद्दौला की भाँति शाह-खर्च न थे। परन्तु खर्च की जगह पीछे न हटते थे। ये अँग्रज-सरकार के बड़े भक्त थे; क्योंकि इन्हें अंग्रेज सरकार ने ही गद्दीनशीन किया, और उस वक्त कम्पनी के साथ इनकी ये शर्त हो गई थीं :- १-कम्पनी को बकाया रक़म दे दें। २-इलाहाबाद का किला कम्पनी का है। उसकी मरम्मत के लिये आठ लाख रुपया दे दें। ३-फतहगढ़ के किले की मरम्मत के लिए तीन लाख रुपये दे दें। ४-फ़ौजों के इधर-उधर जाने-आने का खर्चा दें। कितने लाख?- यह पीछे देखा जायेगा। ५-उन्हें नवाब बनाने की चेष्टा में जो खचं हुआ, उनके लिये १२ लाख रुपये दें। ६-पदच्युत नवाब वजीरखाँ को डेढ़ लाख की पेन्शन दें। ७-'सब-सीडियरी सेना' के खर्च के लिये ५६ लाख के स्थान पर ७६ लाख रुपया सालाना दें। मेजर वई का अनुमान है कि इस प्रकार कुल मिलाकर एक करोड़ रुपये से ऊपर तथा इलाहाबाद का किला एक वर्ष ही के अन्दर कम्पनी को 1
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