२४६ नवाब ने किसी की न सुनी। वरन्, जिस-जिस पर उसे षड्यन्त्र का सन्देह हुआ, उस-उस को उसने अपने साथ ले लिया, जिससे पीछे का खटका भी मिट गया। राजवल्लभ, मीरजाफ़र, जगतसेठ, मानिकचन्द्र, सभी को अनिच्छा होने पर भी नवाब के साथ चलना पड़ा। अंगरेजों ने स्वप्न में भी न सोचा था कि वह ऐसी बुद्धिमत्ता से राजधानी के सब झगड़े मिटाकर, बिलकुल बे-खटके होकर, इतनी सैन्य ले, कलकत्त पर आक्रमण करेगा। ७ जून को खबर कलकत्ते पहुँची । नगर में हलचल मच गई । अंग- रेज़ लोग प्राणपण से तैयारी करने लगे। उसी किले में ढेरों तोपें लगादी गईं। जल-मार्ग सुरक्षित करने को, बाग़बाज़ार वाली खाई में लड़ाई के जहाज़ लगा दिये गये। १५०० सिपाही खाई के बराबर खड़े किये गये। चहारदीवारी की समस्त मरम्मत करवाकर उसमें अन्नादि भर दिया गया। मद्रास से मदद मांगने को हरकारा भेजा गया, और जिन फ्रान्सीसी शत्रुओं के डर से किला बनाने का बहाना किया गया था, उनसे तथा डचों से भी सहायता मांगी गई। डच लोग तो सीधे-सादे सौदागर थे। उन्होंने लड़ाई-झगड़े में फंसने से साफ़ इनकार कर दिया। परन्तु फ्रेंचों ने जवाब दिया-“यदि अंगरेजी शेर प्राणों से बहुत ही भयभीत हो रहे हैं, तो वे फ़ौरन् ही बिना किसी रोक- टोक के चन्दननगर में हमारा आश्रय लें। आश्रितों की प्राण-रक्षा के लिये फ्रान्सीसी वीर सिपाही अपने प्राण देने में तनिक भी कातर न होंगे।" इस उत्तर से अंगरेज़ लज्जित हुए, और खीझे । कलकत्ता से ढाई कोस पर गंगा के किनारे नवाब का एक पुराना किला था। ५० सिपाही उसमें रहते थे । वह कभी किसी काम न आता था। अंगरेज़ों ने दौड़कर उस पर हमला कर दिया। बेचारे सिपाही भाग गये। उनकी तोपें तोड़-फोड़कर अंगरेज़ों ने गंगा में बहादी, और बड़े गौरव से अपनी विजयपताका उस पर फहरा दी। लोगों ने समझ लिया, बस, अब अंगरेज़ों की खैर नहीं है । नवाब यह उद्दण्डता न सहन करेगा। दूसरे दिन २००० नवाबी सिपाही क़िले के सामने पहुंचे ही थे, कि अंगरेज़ अफ़सर लज्जा को वहीं छोड़, खिसकने लगे। परन्तु सिपाहियों ने भागतों पर भी तरस न किया। भागते-जहाज़ों पर 1 -
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