२५३ दक्खिन की ओर खाई न थी-घना जंगल था। पीछे गङ्गा में युद्ध-सज्जा से सजे जहाज तैयार थे। १८ जून को नवाब की तोप दगी । अंगरेजों ने तत्काल क़िले और जहाजों से आग बरसानी शुरू की। अंगरेजों का ख्याल था कि बाग़बाजार की ओर से ही नवाब आक्र- मण करेगा। उस मोर्चे पर उन्होंने बड़ी-बड़ी तोपें लगा रखी थीं। पर अमीचन्द के उस जख्मी जमादार जगन्नाथ की सहायता से नवाब को यह भेद मालूम होगया कि नगर के दक्षिण में मराठा-खाई नहीं है। अतएव नवाब ने उसी ओर आक्रमण किया। लालबाजार के रास्ते के ऊपर पूर्व की ओर जो तोपों का मंच बनाया गया था, उसके सामने की कुछ दूर पर जेलखाना था। अंगरेजों ने उसकी एक दीवार को फोड़कर कुछ तोपें जुटा रखी थीं। उनका ख्याल था कि लालबाजार के रास्ते नवाबी सेना के अग्रसर होते ही जेलखाने और पूर्व वाले मोर्चों से आग बरसाकर सेना को तहस-नहस कर देंगे। परन्तु नवाब की सेना अनजानों की तरह तोपों के सामने सीधी नहीं आई । उसने सावधानी से सड़कवाला रास्ता ही छोड़ दिया। केवल पहरेदारों को मार- कर वह उत्तर और दक्षिण को हटने लगी। देखते-ही-देखते अंगरेज़ी तोपों के तीनों मोचें घिर गये। अब तो नगर-रक्षा असम्भव हो गई । कलकत्ते के स्वामी हॉलवेल साहब और मोर्चे के अफ़सर कप्तान क्लेटन किले में भाग गये। मोर्चे नवाबी सेना के कब्जे में आगये । अब उन्हीं तोपों से किले पर गोले बरसने लगे। किले में कुह- - राम मच गया। 1 किले के नीचे गङ्गा में कुछ नाव और जहाज तैयार थे। उनके द्वारा स्त्रियों को सुरक्षित स्थान पर पहुँचा देने की व्यवस्था शाम को हुई, स्त्रियों को जहाज तक पहुँचाने को दो अफ़सर मेनिहम और फ्रांकलेण्ड रात्रि के अन्धकार में चुपके-चुपके निकले। परन्तु जहाज पर पहुँचकर उन्होंने फिर किले में आने से साफ़ इन्कार कर दिया। उनकी इस कायरता का वर्णन यरंटन साहब ने इन शब्दों में किया है- 'उनका पारस्परिक अनैक्य और मतभेद तथा कम्पनी के कुछ प्रधान-कर्मचारियों की बिना ही
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