२५५ द्रवीभूत हो नवाब के सेनानायक मानिकचन्द को एक पत्र इस आशय का लिख दिया-"अब नहीं। काफी शिक्षा मिल गई है । नवाब की जो आज्ञा होगी-अंगरेज वही करेंगे।" यह पत्र हॉलवेल साहब ने चहारदीवारी पर खड़े होकर बाहर फेंक दिया। पर इसका कोई जवाब नहीं आया। पता नहीं, वह पत्र ठिकाने पहुँचा भी या नहीं। एकाएक किले का पश्चिम दरवाजा टूट गया, और धुआँधार नवाबी सेना क़िले में घुस आई । सब अंगरेज़ कैद कर लिये गये। किले के फाटक पर नवाबी पताका खड़ी कर दी गई। तीसरे पहर नवाब ने किले में पधारकर दरबार किया। अमीचन्द और कृष्णवल्लभ को खोजा गया। अंगरेज़ों के ही इतिहास में लिखा है कि-"वे दोनों आकर जब नवाब के सामने नम्रतापूर्वक खड़े हुए, तो नवाब ने उनका तिरस्कार तो दूर रहा, उनका आदर करके आसन दिया। यही कृष्णवल्लभ था—जिसकी बदौलत इतने झगड़े हुए थे।" इसके बाद अंगरेज़ कैदियों की तरह बाँधकर नवाब के सामने लाये गये । सामने आते ही हॉलवेल साहब के बन्धन खुलवा दिये गये, और उन्हें अभय-दान देते हुए कहा-"तुम लोगों के उद्दण्ड-व्यवहार के कारण ही तुम्हारी यह दशा हुई है।" इसके बाद सेनापति मानिकचन्द को क़िले का भार सौंपकर दरबार बर्खास्त किया। थकी-माँदी सेना आराम का स्थान इधर-उधर खोजने लगी। यह बात बहुत प्रसिद्ध हो गई है कि नवाब ने १४६ अंगरेज उस दिन (२० जून को)-रात को–१८ फुट आयतन को कोठरी में बन्द करवा दिये, जिसमें सिर्फ एक खिड़की थी, और जिसमें लोहे के छड़ लगे थे प्रातःकाल जब दरवाजा खोला गया, सिर्फ २३ आदमी ज़िन्दा बचे । काल-कोठरी की यह बात इतनी प्रसिद्ध होगई है कि समस्त भारत और इग्लैंड में बच्चा-बच्चा इस बात को जानता है । पर यह बात प्रमाणित की जा चुकी है कि यह सिर्फ नवाब को बदनाम करने को हॉलवेल ने कहानी गढ़ी थी, जिसके अत्याचार का ज़िक्र मुचलके में है, और जो बड़ा मिथ्या- वादी आदमी था। अत्यन्त साधारण बुद्धिवाला व्यक्ति भी समझ सकता है कि १८ 1 -
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