पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/३३७

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३२८ हो गये थे-उन्हौने कृत्तिवास को पूरी सहायता देकर रामायण का अनुवाद बँगला में कराया था। हुसेनशाह के सेनापति परंगलखाँ ने कवीन्द्र परमे- श्वर से महाभारत का एक और अनुवाद कराया था। एक मुसलमान नवाब ने मालिक ने मुहश्मद जायसी की पद्यावत का बँगला में अनुवाद कराया था। दिनेशचन्द्र लिखते हैं-"मुसलमान बादशाहों और नवाबों ने बहुत-से संस्कृत और फ़ारसी के ग्रन्थों का अपनी ओर से बँगला में अनुवाद कराया। xxx इसका अनुवाद हिन्दू-राजाओं ने किया, और अपने दरबार में बंगाली कवियों की नियुक्ति की।" दक्षिण में बहमनी बादशाहों ने ऐसा ही किया। आदिलशाही दफ़्- तरों में मराठी भाषा का खूब उपयोग होता था, तब मराठों को भरपूर बड़े-बड़े पद दिये जाते थे । कुतुबशाह मराठी का उत्कृष्ट कबि और पण्डित था। फलतः मराठी भाषा में फ़ारी और हिन्दी-शब्दों की काफ़ी भरमार होगई, इसी प्रकार पंजाबी और सिन्धी भाषाओं में भी जीवन पड़ा । यदि देखा जाय, तो अनेक मुसलमान हिन्दी के उच्च कोटि के कवि और अनेक हिन्दू उर्दू के उच्च कोटि के कवि इसी मिश्रण से हुए, और हिन्दी, उर्दू, मराठी, पंजाबी, गुजराती, बँगला,-आदि देशी भाषाओं में फारसी, तुर्की- शब्दों और मुहाविरों की भरमार ही इसका कारण है। अकबर ने फ़ैजी की सहायता से अनेक महत्वपूर्ण संस्कृत-ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद कराया था, और दारा ने अनेक उपनिषदों और हिन्दू धर्म ग्रन्थों को फ़ारसी में अनुवादित कराया। वैद्यक, ज्योतिष और गणित ने भी मुग़ल-राज्य में खूब उन्नति की। १८ वीं शताब्दी में जयसिंह महाराज ने हिन्दू-पंचाङ्गों का सुधार करने के लिये जयपुर, मथुरा, दिल्ली और काशी में ज्योतिष-यन्त्रालय बनवाये और अरबी के आलमजस्ती का संस्कृत में अनुवाद कराया । कीमियागिरी के बहुत-से नुस्खो, तेजाब, रसायन, काग़ज बनाना, कलई करना, चीनी मिट्टी का उपयोग मुसलमानों से भारत में प्रचलित हुए। अभिप्राय यह कि शताब्दियों तक भारत में अराजकता रहने के बाद मुग़लों के काल में शिल्प, वाणिज्य, कला-कौशल बढ़े और यह बात यहीं तक न रही, प्रत्युत हिन्दुओं के कट्टर-धर्म में भी भारी परिवर्तन हुए।