पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/३३९

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X X ३३० की खूब भरमार थी। १५ वीं शताब्दी के मध्य में नानक का जन्म हुआ, और उन्हें फ़ारसी तथा संस्कृत दोनों भाषाओं में शिक्षा दी गई। ३० वर्ष की आयु में वे साधु हुए, और अपने मुससमान शिष्य मदीन को लेकर भारत, लङ्का, ईरान, अरब आदि देशों में भ्रमण करने गये उन्होंने पानी- पत के शेख शरफ़ मुसलमान के मीर बाबा फरीद के शित्य शेख इब्राहीम के साथ बहुत काम तक विचार-विनिमय किया। अन्त में उन्होंने एक नये धर्म को जन्म दिया, जो आजकल सिख धर्म कहता है । यह धर्म एकता और प्रेम का धर्म था, जो हिन्दू मुसलमान दोनों के लिए खुला था । नानक का कथन है- बन्दे एक खुदाय दे, हिन्दु मुसलमान । दावा राम-रमूल कर, लड़दे वेईमान ॥ X ना हम हिन्दु ना मुसलमान । दोनों बीच बसे शैतान । एक, एको, एक सुभान ॥ गुरुजी कहिया सुन अब्दुर रहमान । दावा-भूलो नॉ इक्क पिछाणा ॥ नानक ने गंगा-स्नान, पूजा, जप, तप पाठ सभी व्यर्थ बताए हैं, वेद- पुराणों को निरर्थक कहा है अवतार और प्रतिमा-खण्डन किया है, जाति- भेद का विरोध किया है। अपने एक पद में वे कहते हैं- "दया की मस्जिद बना, सचाई को मुला बना, इन्साफ़ को कुन्ि बना, विनय को खतना समझ, सुजनता का रोज़ा रख, तब तू सच्चा मुसल- मान होगा।" मुग़ल-साम्राज्य की अन्तिम परिस्थिति में नानक के सम्प्रदाय बहुत उलट-पलट गये। इनके अतिरिक्त धन्ना-जाट, पीया, सेना नाई और रैदास चमार-आदि सन्तों ने भी बड़ी प्रसिद्ध प्राप्त की। इन सब के सिद्धान्त भी इसी भाँति के थे । दादू कबीर के शिष्य थे । इन्होंने भी अपने धर्म का प्रचार किया। वह कहता है-