पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/३४९

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३४० बनाने से कारीगर का कुछ आदर किया जाता है, या उसे स्वतन्त्रता दी जाती है। कारण, जो भी कुछ वह करता है-आवश्यकता और कोड़ों के डर से करता है। उसके मन में सन्तोष और सुख की आशा नहीं होती। इसलिये यदि रूखा टुकड़ा खाने को और मोटा-झोटा कपड़ा पहनने को मिल जाय, तो इसी को वह बहुत समझता है । रुपया भी मिले, तो उसे क्या-वह तो उस व्यापारी का माल है, जो सदैव इसी की चिन्ता में लीन रहा करता है, कि-यदि कोई बलवान अत्याचार या ज़बर्दस्ती करना चाहे तो उससे मैं कैसे बनूंगा? व्यापार की गिरी अवस्था -जिस देश में इस प्रकार का शासन हो, वहाँ उन्नति और सफलता के साथ व्यापार भी नहीं हो सकता, जैसे यूरोप में होता है; क्योंकि ऐसे लोग बहुत कम हैं, जो अपनी इच्छा से परिश्रम करना, और दूसरों के लाभ के लिये कष्ट उठाना अथवा अपनी जान-जोखों में डालना पसन्द करें। किसी दूसरे व्यक्ति से मेरा प्रयोजन ऐसे शासक से है, जो लोगों की कमाई छीन लेने में नहीं हिचकता, चाहे कितना ही लाभ क्यों न हो, कमाने वाले को दरिद्री का-सा वस्त्र पहनना, और निर्धन पड़ौसियों से बढ़कर खाने-पीने में कंजूसी करना आवश्यक है। परन्तु हाँ, जब किसी सैनिक-सरदार से किसी व्यापारी का सम्बन्ध होजाता है, तब, अवश्य ही वह बड़े-बड़े व्यापारिक कार्य करने लगता है। तोभी उसे अपने संरक्षक की गुलामी में रहना आवश्यक है, जो उसकी रक्षा के बदले, जिस प्रकार की प्रतिज्ञा चाहे, उससे करा लेता है। सूबेदार-आदि वास्तव में नीच, ऋणी और गुलाम होते हैं, तथा कुछ भी सम्पत्ति उनके पास नहीं होती। किन्तु शासन-कार्य मिलते ही वे बड़े बुद्धिमान और सन्तुष्ट अमीर बन जाते हैं। इस प्रकार समग्र देश में दुर्दशा और तबाही फैली हुई है । जैसाकि मैं पहले कह चुका हूँ, ये सब सूबे- दार अपने-अपने स्थानों में छोटे-मोटे बादशाह बने हुए हैं । इनके अधिकार असीम हैं। कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है, जिसके पास पीड़ित प्रजा जाकर पुकार सुना सके। कोई भी कैसा-ही भयानक अत्याचार बारम्बार क्यों न मचावे, परन्तु किसी प्रकार की सुनवाई की आशा नहीं है । यदि किसी प्रकार कोई शिकायत करनेवाला बादशाह के पास पहुँच -