दो शब्द
भारत में आर्यों की सभ्यता स्थापित हो जाने के बाद समय-समय पर अनेक विदेशी आक्रान्ताओं ने भारत को आक्रान्त किया। उनमें बहुत तो लूटमार करके अपने देशों को लौट गये, बहुत यहीं बस गये। आर्यों ने उन्हें अपने अन्दर विलीन कर लिया। इस कार्य के लिए आर्यों ने बड़ा साहस किया। जब शक, तातार, हूण और यवन जातियों ने भारत को आक्रान्त कर यहाँ बसने का इरादा किया तो आर्यों ने उन्हें पराया या विदेशी नहीं रहने दिया। उन्होंने भारत के अनार्य जनों और इन समागत जनों को लेकर एक नई जाति बना डाली। इस काम के करने में उन्हें अपने धर्म, जाति, भाषा, आचार-विचार सभी को त्यागना पड़ा। संस्कृत भाषा के स्थान पर लोक भाषा, यज्ञ के स्थान पर मूर्तिपूजन और दर्शन तथा वेद के स्थान पर पुराण साहित्य को धर्म का प्रतीक बनाया। सूक्ष्म-तत्त्व-दर्शक धर्म त्यागकर, मोटा सर्व-जन सुलभ धर्म अपनाया और इस प्रकार उन्होंने अत्यन्त बुद्धिमानी से अपने-पराये का भेद खोकर सबकी एक सम्मिलित हिन्दू जाति बना ली जिसकी एक ही संस्कृति और सभ्यता थी।
विद्वान् जानते हैं कि भारत के दो प्रतापी सम्राट् हुए। एक कनिष्क दूसरे चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य। यह निर्विवाद कहा जा सकता है कि इन्हीं दोनों सम्राटों ने आज के सम्पूर्ण संस्कृत साहित्य का श्रृंगार किया। कनिष्क और विक्रमादित्य के सभा-पण्डितों की वाग्धारा ही आज का हमारा बहुमूल्य संस्कृत साहित्य है। क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि एक अनार्य सम्राट भी हमारी संस्कृति का प्रतिष्ठाता हुए।
परन्तु भारत में इस्लाम का आगमन इन सब समागत जनों से नया निराला हुआ। मुस्लिम आक्रान्ताओं ने द्विमुखी युद्ध छेड़ दिया। एक धर्म युद्ध का दूसरा राज-नैतिक युद्ध। मुस्लिम आक्रान्ताओं ने इस द्विमुखी युद्ध में योरोप और मध्य एशिया में महान् सफलता प्राप्त की। मिस्र, ईरान, पैलेस्टाइन, तुर्किस्तान और अफगानिस्तान के आसपास के भूखण्ड के न केवल राज्य ही आक्रान्त किये, प्रत्युत वहाँ के प्रत्येक निवासी को मुसलमान बना लिया । यह उनकी अद्भुत और आश्चर्यजनक सफलता थी। परन्तु उन सबसे अधिक आश्चर्यजनक वह असफलता थी जो भारत में इन विजेता आक्रान्ताओं को मिली। भारत की राजनैतिक लड़ाई में मुसलमानों ने विजय पर विजय प्राप्त की, परन्तु धर्म युद्ध में उन्हें निरन्तर पराजित होना पड़ा। यद्यपि यह सत्य है कि कुछ प्रान्तों में नीच जाति के लोगों ने मुस्लिम धर्म अंगीकार किया, दक्षिण के समुद्र किनारे पर बसने वाले तथा पूर्वी बंगाल के समुद्र तीर बसने