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पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/४९

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करके उसके स्थान पर इस्लाम का साम्राज्य स्थापित किया था। अपने समय में वह सर्वाधिक शक्तिशाली मुसलमान बादशाह था और स्वयं ख़लीफ़ा वंशज ने उसे ख़लीफ़ा की पदवी दी थी। जिस समय सलीम ने ख़लीफ़ा की पदवी को ग्रहण किया, उस समय मुल्लाओं और मौलवियों में भारी विवाद उठ खड़ा हुआ था। अन्त में जब मक्का में उसे ख़लीफ़ा स्वीकार कर लिया गया तो यह विवाद मिट गया। अलबत्ता शिया लोगों ने उसे ख़लीफ़ा न माना। क्योंकि वे किसी भी नामज़द व्यक्ति को ख़लीफ़ा स्वीकार नहीं करते।

तुर्क का जब कोई बादशाह गद्दी पर बैठता तो कैरों में मिस्र के और अय्यूब की मस्जिद में तुर्की के उल्मा सभा करके उसे ख़लीफ़ा करार देते। और ख़िलाफत की सनद देने की रस्म पूर्ण की जाती। सुल्तान को अय्यूब की मस्जिद में उल्माओं की स्वीकृति और शेखुल इस्लाम के हाथ से अली की तलवार ग्रहण करनी पड़ती। तब से वह मक्का, मदीना, करबला, जेरूसलम आदि मुस्लिम तीर्थों का संरक्षक माना जाता था। वह पवित्र चिह्न जैसे हज़रत मुहम्मद का लबादा, अली की तलवार और उनका झण्डा तथा अन्य वस्तुओं को पास रखता था। इस प्रकार तुर्क सुलतान अब तक ख़लीफ़ा होते आये हैं।

जब योरोप में महायुद्ध हुआ। और तुर्क के सुलतान ने जर्मनी का साथ दिया। तब संसार भर के मुसलमानों में हलचल मच गई। परन्तु चतुर लायड जार्ज ने इस अशान्ति को दूर करने के लिये घोषणा कर दी कि हम युद्ध के बाद मुसलमानों के धार्मिक चिह्नों और काबे को कोई हानि नहीं पहुँचावेंगे। हम तुर्क के उन मन्त्रियों से लड़ रहे हैं जो हमारे शत्रु से मिल गये हैं। ख़लीफ़ा से हमारा कोई झगड़ा नहीं है। परन्तु युद्ध के बाद विजयी मित्र राष्ट्रों ने तुर्क साम्राज्य को छिन्न-भिन्न कर डाला। महायुद्ध से प्रथम तुर्क साम्राज्य का क्षेत्रफल सत्रह लाख दस हज़ार दो सौ चौबीस वर्ग मील था और आबादी दो करोड़ बारह लाख तिहत्तर हज़ार नौ सौ थी। पर सीवर की सन्धि के आधार पर तुर्की के अफ्रीका के प्रदेश छीन लिये गये और अरब, मक्का, मदीना आदि तीर्थों पर ख़लीफ़ा का कोई अधिकार न रहा। मेसापोटामिया और पेलेस्टाइन को माण्डेन्ट के बहाने से ब्रिटेन ने क़ब्जे में कर लिया। जेरूसलम-करबला पर भी ख़लीफ़ा का अधिकार न रहा। इस