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पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/९९

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जहाँगीर अपने हकीम से बहुत चिढ़ता था। वह पक्का मुसलमान और धर्मात्मा आदमी था। एक बार वह उस समय दर्बार में पहुँच गया जब बादशाह शराब पिये था। इसे देखते ही बादशाह ने कहा---मेरा तीर कमान लाओ, मैं इस खूसट को खतम करूँगा। नूरजहाँ पर्दे में बैठी थी, उसने ग़ुलामों को इशारा किया कि असली तीर न दिये जायँ, बेत के तीर दिये जायँ। बस बादशाह ने तीर बरसाने शुरू किये। यह सब कुछ होने पर भी हकीम साहब झुक झुक कर सलाम किये जाते तथा आदाब बजाये जाते थे, अन्त में मलका के इशारे पर ग़ुलामों ने उसे संकेत किया कि 'अभागे लेट जा क्यों जान का दुश्मन बना है।' हकीम बेचारा लेट गया। बादशाह ने समझा कि मर गया। तब बोला, अच्छा हुआ---इसने भी बहुतों की जानें ली हैं।

बादशाह का नूरजहाँ को हथियाना इतिहास की प्रसिद्ध घटना है। कदाचित् ही कोई ऐसा प्रेम-दीवाना पुरुष हो जो किसी एक स्त्री पर इस भाँति मुग्ध हो जाय। नूरजहाँ का जीते दम तक बादशाह पर असाध्य अधिकार रहा। सारी सल्तनत नूरजहाँ के अधिकार में थी, सब स्याह सफेद करने का उसे अधिकार था। नूरजहाँ ने एकबार उससे प्रतिज्ञा कराई कि वह शराब पीना कम कर देगा। और दिन भर में नौ प्यालों से ज्यादा न पीवेगा। कुछ दिन तो प्रतिज्ञा चली। एकबार ऐसा हुआ कि एक जलसा हुआ, बादशाह को मलका प्याले भर भर कर देती गई। जब नौ प्याले बादशाह पी चुका तो और माँगा---पर मलका ने इन्कार कर दिया। बादशाह ने बहुत मिन्नत चापलूसी की पर बेकार। अन्त में बादशाह को गुस्सा आगया और हाथापाई होने लगी। शीघ्र ही गुत्थम गुत्था हो गई । अब इन्हें अलग कौन करे?

बाहर भाँडों ने यह देख स्वयम् गुत्थम गुत्था होना, धमाचौकड़ी मचाना, चिल्लाना शुरू कर दिया। बाहर का शोर सुनकर बादशाह लड़ाई रोक बाहर निकले---और पूछा यह क्या शोर गुल है। भाँडों ने दस्तवस्ता अर्ज की, हजूर की लड़ाई रोकने की यही तर्कीब समझ में आई। इस पर मलका व बादशाह दोनों खूब हँसे और खूब इनाम दिया। परन्तु नूरजहाँ इस घटना से बहुत नाराज हुई और उसने बादशाह से बोलना भी छोड़ दिया। उसके तमाम तोहफे वापस भेज दिये, बादशाह, ने बहुत खुशामद की पर