पृष्ठ:भाषा-भूषण.djvu/१००

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- ( ७० ) चन्द और नहिं शब्द को मिला देने से चन्दनहिं हो जाता है जिससे सुनने में चन्दन की पुनरावृत्ति मालूम होती है। यह भेद भी अनुप्रास ही के अंतर्गत है। २०४-२०८-जब एक ही अक्षर को अनेक बार श्रावृत्ति हो । इसके तीन भेद हैं- ( १ ) जिसमें केवल मधुर अक्षरों को श्रावृत्ति हो, ( समास न हों और यदि हों तो बहुत छोटे )। जैसे, अत्यंत कानी और घनी घटा उठी है, प्रेयसी की अवस्था अभी थोड़ी है, पति परदेश गया है और ( अागमन का ) संदेशा भी नहीं आया। इसमें री स की श्रावृत्ति है। ( २ ) जिसमें बहुत से समास हो । जैसे, कोयल, चातक, भौरे, कठोर मोर और चकोर के शोर सुनकर हृदय काँप उठा क्योंकि कामदेव की सेना बलवती है। क की श्रावृत्ति दोहे भर में हैं और पुरा पूर्वाध द्वंद्व समास से एक हो रहा है। ( ३ ) जिसमें न समास हो हो और न मधुर अक्षरों की आवृत्ति हो । जैसे, बादल बरस रहा है, बिजली चमक रही है और दसों दिशाओं में जल ही जल दिखला रहा है। इससे युगल प्रेमियों में श्रानंद से प्रेम उमड़ा पड़ता है। इसमें स, द और त अक्षरों की श्रावृत्ति है। -वृत्यनुप्रास के तीन भेदों तथा छेक, लाट और यमकको मिलाकर छ हुए।