पृष्ठ:भाषा-भूषण.djvu/१६

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. २-अलंकार वाक्य में आये हुए शब्दों का उसी के अनुकूल अर्थ लेने को जिन शक्तियों का प्रयोग होता है उनकी विवेचना करने पर ज्ञात होता है कि उनप कुछ विशेषता भी उत्पन्न हो जाती है और फिर उन्हींसे रस के उत्कर्ष को बढ़ानेवाले अलंकार अंकुरित होते हैं। रस के उत्कर्ष को बढ़ानेवाले अनेक गुण माने गए हैं जिनमें माधुर्य, अोज और प्रसाद तीन प्रधान हैं । अब यह विचारणीय है कि इन गुणों का रस से संबंध है या शब्दों तथा उनके द्वारा वाक्यों से । जिस प्रकार वीरता का मनुष्य की प्रात्मा से, न कि शरीर से, संबंध है उसी प्रकार गुणों का वाक्य की आत्मा रस से संबंध है, न कि शब्दों द्वारा गठित वाक्य से । जैसे दीर्घकाय पुरुष को देखकर ही उसे वीर मान बेना तथा सत्य पर कृशांग वीर को वीरता-हीन मानना सार-हीन है, वैसे ही नीरस पर मधुराक्षरों द्वारा सुगठित वाक्य को मधुरा और वास्तविक सरस पर कर्णकटु अक्षरों द्वारा गठित वाक्य को माधुर्यहीन कहना भी निस्सार है । इस विचार से यही निश्चय होता है कि गुणों का संबंध रस से है, शब्दों तथा उनके द्वारा वाक्यों से नहीं। जिस प्रकार अलंकारों ( भाभूषण ) के शरीर पर धारण करने से सहज सौंदर्य की वृद्धि होती है उसी प्रकार अलंकार भी शब्दों तथा उनके द्वारा गठित वाक्यों में लाए जाने पर गुणों का उत्कर्ष करते हैं। अलंकारों के बिना भी शरीर की नैसर्गिक सुंदरता तथा सरस वाक्यों के माधुर्यादि गुण बने रहते हैं। वाक्यों की अन्तरात्मा रस के गुणों की विशेषता शब्दों तथा उनके अर्थों द्वारा उसी प्रकार प्रकट होती है जिस प्रकार हार मादि प्राभूषणों के शारीरिक अवयवों पर धारण करने से नैसर्गिक शोभा की वृद्धि होती है। इसी कारण अलंकार के शब्दों तथा उनके अर्थो द्वारा विशेषता प्रकट करने की शक्ति के अनुसार, दो भेद