कर सकते हैं। इन सिद्धांतों में साम्य, विरोध, शृंखला, न्याय और वस्तु प्रधान हैं। (.)साग्यमूल- -जब दो पदार्थो की समानता का भाव दृष्टि में रखते हुए किसी वर्णन में चमत्कार की व्युत्पत्ति की जाती है तब वह साम्यम् ल क कहा जाता है । इसे लादश्यमूल, साधर्म्य मल तथा प्रौपम्यगत भी कहते हैं पर अंतिम नामकरण कुछ संकीर्ण हो जाता है। इस सिद्धांत के अंतर्गत बगभग प्राधे अलंकार श्रा जाते हैं, इसलिए स्पष्ट करने के लिए इस विभाग के कुछ उपभेद किए जाते हैं । ( क ) अभेद प्रधान -जब दो समान पदार्थों में किसी प्रकार का भेद न हो और वे एक से प्रकट किए जायें । इस उपभेद के अंतर्गत रूपक, परिणाम, उल्लेख, भौति, संदेह और अपहु। ति अलंकार हैं। ( ख ) भेद-प्रधान -जब दो पदार्थों को समानता स्थापित करते हुए भी उन दोनों में भिजता या अपेक्षता को प्रकट किया जाय ! इसके अंतर्गत प्रोप, तुल्य योगिता, दीपक, दीपकावृत्ति, प्रतिवस्तुपमा, दृष्टांत निदर्शना, सहाक्ति, विनोक्ति और व्यतिरेक अलंकार हैं। (ग) भेदाभेद-प्रधान -जब दो पदार्थों की समानता पूर्ण हो पर यह प्रकट किया जाय कि वे दो भिन्न भिन्न पदार्थ हैं । इस भेद में छपमा, अनन्वय, उपमानोपमेय और स्मरण अलंकार हैं। (घ) प्रतीति-प्रधान-जिनमें समानता की प्रतोति मात्र हो । उत्प्रेक्षा और अतिशयोक्ति इसके अंतर्गत हैं। (3) गम्यप्रधान जिनमें कुछ समान बातें व्यंग्य से ध्वनित होती हो। इसमें प्रस्तुतप्रशंसा, प्रस्तुतांकुर, पर्यायोक्ति, व्याअस्तुति, व्याजनिंदा और भाक्षेप परिगणित हैं। ( च ) अर्थ-वैत्रिय प्रधान -जिसमें समानता का भाव रहते हुए शब्द या वाक्य के अर्थ में कुछ विचित्रता हो। समासोक्ति, परिकर, परिकरांकुर और श्लेष इस उपभेद में माने जाने चाहिएँ। ७
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