पृष्ठ:भाषा-भूषण.djvu/४३

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( १३ ) [ परिकर]] है परिकर प्रासय लिये जहाँ विमेपन होइ । ससिबदनी यह नायिका ताप हरति है जे ॥६॥ [परिकरांकुर ] साभिप्राय बिसेष्य जब परिकर-अंकुर नाम । सूधेह पिय के कहें नेक न मानति धाम ॥ ६ ॥ [ श्लेष अलंकार ] श्लेप प्रलंकृत अर्थ बहु एक शब्द में होत । हाइ न पूरन नेह बिनु ऐसा* बदन उदात ॥ १८ ॥ [ अप्रस्तुत प्रशंसा अलंकार द्वै भाँति की प्रस्तून प्रसंस । इक बन्न प्रस्तुत बिना दुजें प्रस्तुत अंस ॥ २६ ॥ धनि यह चरचा ज्ञान की सकल समै सुख देतु । विष राखत हैं कंठ शिव श्राप धरयो इहि हेतु ॥ १० ॥ [प्रस्तुतांकुर ] प्रस्तुत ग्रंकुर हैं कियै प्रस्तुत में प्रस्ताइ । कहाँ गयो अलि केवरे छोडि सुकोमल जाह॥ १०१ ॥ [पर्यायोक्ति पर्यायाक्ति प्रकार द्वै कछु रचना से बात । मिसु करि कारज साधिय जो है चित्त सुहात ॥ १०२ ॥ पा० दीपक ।