पृष्ठ:भाषा-भूषण.djvu/५८

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( २८ ) [ यमकानुप्रास अलंकार ] जमक सब्द को फिरि स्रवन अर्थ जुदो से जानि । सीतल चंदन चंद नहिं अधिक अग्नि ते मानि ॥ २०३ ॥ [ वृत्यनुप्रास अलंकार ] प्रति प्रच्छर श्रावृत्ति बहु वृत्ति तीन बिधि मानि । मधुर बरन जामै सवै उपनागरिका जानि ॥ २०४ ॥* दू0 परुपा कहत सब जामैं बहुत समास । बिनु समास बिनु मधुरता कहै कोमला तास ॥ २०५ ॥ प्रति कारी भारी घरा प्यारी बारी बैस । पिय परदेस अँदस यह प्रावत नाहिं सँदेस ॥ २०॥ कोकिल-चातक-भुंग-कुल- केकी कठिन चकोर । भार सुने घरक्यो हियो काम-कटक अति जोर ॥ २०७॥ घन बरसै दामिनि लसै दम दिति नीर-तरंग । दंपति-हीय हुलास ते अति सरसात अनंग ॥ २०८ ।।

  • पाठा० अंतिम शब्द ' होइ और जोइ ' है।