( ४८ ) पद्माकर भट्ट ने पद्माभरण में इसका लक्षण देकर इसके पाँच भेद बतलाए हैं। अप्रस्तुत वृत्तांत महँ जहँ प्रस्तुत को ज्ञान । वे भेद मारूप्य निबंधना, सामान्य निबंधना, विशेष निबं. धना, हेतु-निबंधना, और कार्यनिबंधना हैं । इन पाँचों भेदों के बक्षण तथा उदाहरण दिए जाते हैं- (क) जब इसका समता द्वारा उपयोग हो । जैसे, बक धरि धीरज कपट तजि जो बनि रहै मराल । उघरै अंत गुलाब कवि अपनी बोलनि चाल ॥ गुलाब ( ख ) सामान्य के कथन से अभीष्ट विशेष का वर्णन किया जाय । जैसे, सीख न माने गुरुन की अहितहि हित मन मानि । सो पछितावै तासु फल ललन भए हित हानि ॥ मतिराम (ग) विशेष के कथन द्वारा अभीष्ट सामान्य का उल्लेख हो । जैसे, लालन सुरतरु धनद हू अनहितकारी होय । तिनहूँ को आदर न है यो मानत बुध लोय || मतिराम (घ) अप्रस्तुत कारण के कथन से अभीष्ट कार्य का वर्णन हो । जैसे, कह मारुतसुत सुनहु प्रभु ससि तुम्हार प्रिय दास । तव मूरति बिधु उर बसति सोइ स्यामता भास ॥ तुलसी. (ङ) इष्ट कारण का कार्य के कथन द्वारा वर्णन किया जाय जैसे, अरि-तिय भिल्लिन सों कहैं घन बन जाइ इकंत । सिव सरजा सों बैर नहिं सुखी तिहारे कंत ॥ भूषण ( भाषाभूषण के अनुसार यह प्रथम भेद के अंतर्गत है।) भाषाभूपण इस अलंकार के केवल दो भेद किए गए हैं. (१) प्रस्तुत के बिना ही केवल अप्रस्तुत द्वारा वर्णन हो । जैसे, ज्ञान-चर्चा धन्य है जो सभी समय सुख देती है। यह
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