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पृष्ठ:भाषा-भूषण.djvu/८०

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(५० ) . चिन्ह को नायिका देखकर इस प्रकार चातुर्य से कहती हुई उसे उपालंभ देती है। (२) जिसमें किसी अच्छे बहाने से अपना इच्छित कार्य साधा जाय । जैसे, तुम दोनों यहीं ठहरो हम तालाब पर नहाने जाती हैं । सखी नायिका और नायक को एकत्र देखकर स्नान करने के बहाने वहाँ से टल गई। --निंदा के बहाने स्तुति करना । जैसे, हे गंगे तुम्हें क्या कहें तुमने पापियों को भी स्वर्ग में स्थान दे दिया । यहाँ स्वर्ग से पवित्र स्थान को पापियों के द्वारा अशुद्ध करना कह कर कवि निंदा के बहाने गगाजी की मोक्षदायिनी शक्ति की स्तुति करता है। १०५ -साहित्यदर्पण में व्याजनिंदा नहीं है पर व्याजस्तुति का जो लक्षण दिया गया है, उसी में व्याजनिंदा का भी लक्षण पा गया है। साहित्य दर्पण ही का लक्षण भूषण यों कहते हैं सुस्तुति में निंदा कदै निंदा में स्तुति होइ । व्याजस्तुति ताको कहत कवि भूपन सब कोई ॥ भारतीभूषण, पद्माभरण, रसिकमोहन श्रादि में भी इसी प्रकार के लक्षण दिए गए हैं। भाषाभूषण में व्याजनिंदा का लक्षण यों दिया है एक मनुष्य की निंदा के बहाने दूसरे की निंदा हो । जैसे, वह मूर्ख है जिसने चंद्रमा को सदा के लिए क्षीण नहीं बनाया है। विरहिणी नायिका को चंद्रमा का तापकारक होना ज्ञात था, इसी- लिए वह कहती है कि स्रष्टा ने उसे सदा के लिए घीण क्यों न बनाया जिससे वह उसके ताप से बचती और इसी से उसे मूर्ख कहती है। इस प्रकार वह स्रष्टा की निंदा के बहाने चंद्रमा की निंदा करती है। स्तुति में निदा का आभास देना भी व्याजनिंदा है, जिसका लक्षण और उदाहरण पृ० १४ की पाद टिप्पणी में दिया हुआ है।