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पृष्ठ:भाषा-भूषण.djvu/८५

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जल नीचगामी अर्थात् नीचे की ओर जानेवाला है। उससे लक्ष्मी की उत्पत्ति होना अर्थात् कारण और स्वभावतः नीचगामिनी होना अर्थात् कार्य में समानता है। ( ३ ) काम करते ही बिना पृण उद्यम के फल की प्राप्ति होना । जैसे, उसने यश पाने का प्रयत्न किया और वह उसे सहज ही में मिल गया । १२७-इच्छानुकूल फल पाने के लिये उसका उल्टा प्रयत्न करना । जैसे, पवित्र मनुष्य उच्चता ( उन्नति ) प्राप्त करने को नम्रता ग्रहण करते हैं। १२८-१२६-अधिक अलंकार दो प्रकार का है- (१) जब अाधार से श्राधेय की अधिकता या विशेषता दिखलाई जाय । जैसे, तुम्हारा यश सात द्वीप और नौ खंड में भी नहीं समाता । श्राधेय यश की बहुलता दिखलाई गई है। ( २ ) जब अाधार श्राधेय से बढ़कर अर्थात् अधिक हो । जैसे, वह शब्द-सिंधु कितना बड़ा है, जिससे तुम्हारे गुणों का वर्णन किया जाता है श्राधार शब्द-सिधु की विशेषता प्रदर्शित होती है। इस अलंकार के लिए अाधार और प्राधेय विशद होने चाहिये। १३० • --जब अाधार छोटे श्राधेय से भी छोटा होय । जैसे, अँगूठी जो उंगली में पहिरी जाती थी वह अब हाथ में पहिरी जा सकती है। श्राधेय मुंदरी की अपेक्षा प्राधार हाथ का अधिक सूचम होना दिखलाया गया है। १३१ -दो वस्तुओं के किसी गुण का एक दूसरे के कारण होना वर्णन किया जाय । जैसे, चंद्रमा से रात्रि की और रात्रि ही से चंद्रमा की शोभा है। चंद्रमा तथा रात्रि के पारस्परिक संबंध से शोभा गुण की उत्पत्ति हुई। १३२.३४-विशेष अलंकार तीन प्रकार है ( १ ) जब श्राधेय बिना अाधार के हो । जैसे, आकाश-स्थित कंचन- बता में एक साफ फूल लगा हुआ है। उत्पन्न