भूमिका -:0:- १-शब्द-शक्ति जाता 'काग्यम् वाक्यम् रसात्मकम्' से प्रकट होता है कि काव्य सरस पदों का समूह मात्र है पर वास्तव में ऐसा ही है या नहीं इस पर विवेचना करना यहाँ वाचनीय नहीं है। इसी प्रकार वाग्य भी शब्दों के समूह हैं पर केवल कुछ शब्दों को एक साथ पिरो देने ही से वाक्य नहीं बन जब तक इन शब्दों में अर्थ-गर्मित संबंध की प्राणप्रतिष्ठा नहीं की जाती तब तक ये वाक्य का रूप धारण नहीं कर सकते । अब यह भी विवेचनीय है कि क्या शब्दों के जो सर्वसम्मत या निश्चित अर्थ हैं उन्हीं का योग वाक्य का भी अर्थ होता है ? जब तक शब्द किसी वाक्य या वाक्यांश के अंग नहीं बन जाते अर्थात् स्वतंत्र रहते हैं तब तक उनका वही अर्थ लिया जाता है, जो निश्चित मान लिया गया है पर जब वे किसी वाक्य में सम्मिलित किए जाते हैं तब उनका अर्थ वाक्य के तात्पर्य के अनुकूल लिया जाता है। ये अर्थ शब्दों की तीन शक्तियों अमिधा, सपणा और व्यंजना के अनुसार वाच्य, लक्ष्य और व्यंग्य होते हैं। कोई शब्द वाच्यार्थ देने से वाचक, लघयार्थ देने से लपक और ब्यंग्याथ देने से व्यंजक कहलाता है। शब्दों के उसी अभिप्राय के प्रकट करने की शक्ति को, जो उनके नियत प्रथा से निकलती है, अर्थात् मुख्य ( संकेतित ) अर्थ का उद्बोधन करनेवाली शक्ति को अभिधा कहते हैं जैसे, . -
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