पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२५३

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भापा-किसान बाल ने पाविजौर मिपि तीन त्रयों का प्रयोग होता । पाले में पता विनय था। पर, पी. एक के काले दूसरे मा प्रयोग होने लगा और इनमें कोर अंतर न रह गया । वैदिक काल में को भिन्न भिन्न प्रयों का मम्मिलन हो चुका था । अथों के प्रयोग के यि में चयनि गुनानी चोर नत में बहुत कुछ नान्य है, पर दोनों में नर भी हमकः चुके तिकिवा का इतिहान 'बन्ध शभों की "किपारमय है । विभिन्न भागणीव भापानों की क्रियानों में पसार जनानंतर जिउनकी तुलना करके मूलभाषा के रूपों तक पनाम गमन नगरमा दीखता। अभी इस शिला में अधिक नुसंधानी बावस्यकना। पगार लामाया भी तामने अध्ययन किया प्रकार की अध्ययन में शब्द और कपमान, frग, यचा 'मादि व्यापक प्रकरण, नाम, याम्यात प्राशि:- भ, लिकित और व्यका भाषा की विपना (from ):नि नया नार, बन : नारशी मारा 1:वधी । हागा ना ना ना ! “पयन aniमानामा परमप में बहुत सारमा पर मामानानुगार मिस ना में "मानानी : नामात सायनों की बनी विशेष भाग का ना ना ना fiz iri7 77 77 777 Tamil Ti{ ", mil limit .377; : jtja;7171 ij irti 1971.177 . क