पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३१८

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भारतीय लिपियों का विकास २८९ नवीनतम अनुसंधान ओ मोहेंजोदड़ो और हरप्पा में हुए हैं भारत में लिपि की अत्यन्त प्राचीनता (ई० पू० ३०००-४००० वर्ष पीछ) का परिचय देते हैं किंतु लिपियों की खोज का भारत में लेखन का परिणाम का अब तक निर्णय नहीं हुआ। अतः प्राचीन प्रचलन संप्रति उक्त आधार की चर्चा नहीं की जाएगी। उसे छोड़कर अव अन्य साधन का विचार करते हुए, हमें यह देखना है कि भारतवर्य में लेखन का प्रचलन किस समय से आरंभ हुआ। इस संबंध में सबसे पहली बात यह ध्यान देने की है कि इस देश में लिखने के साधन प्रचुर मात्रा में और अनेक प्रकार के पाए जाते थे, यथा---तालपत्र, भूजेपत्र और रूई या कपड़े के वने कागज । लेखनी वर्णन के लिये भी यहाँ कई वस्तुओं का प्रयोग किया जाता था और अक्षर काटने के लिये शलाकाएँ भी काम में आती थीं। कई रंगों की रोशनाई वनाई जाती थी। कागज को चिकना करने के लिये हाथी दाँत, शंख आदि का व्यवहार होता था। किंतु मित्र देश में जहाँ ई० पू० दो हजार वर्ष पूर्व के लिखे अक्षर प्राप्त होते हैं, वहाँ भारत में इतने पुराने ग्रंथों का न मिलना एक . आकस्मिक बात है। इसका मुख्य कारण भारत प्राचीन ग्रंथ लिपि- की उपए जलबायु है जिसमें लेखाधार नष्ट हो वद्ध न मिलने के कारण जाते हैं, टिकाऊ नहीं होते। दूसरा मुख्य कारण ऐतिहासिक है ! विदेशी आक्रमणों के कारण यहाँ की बहुत सी शाचीन सामग्री नष्ट-भ्रष्ट और विलुप्त हो गई है। तथापि इस बात में संदेह नहीं है कि भारतीय वेद इस देश के ही नहीं संसार भर के आदि ग्रंथ हैं और इतना विशाल वैदिक साहित्य विना लिपिबद्ध हुए स्थिर नहीं रह सकता था। लेखनी की वेद- “यद्यपि घेदों के श्रुति नाम के आधार पर यह कालीन उत्पत्ति कहा जाता है कि वेदों का लेखन नहीं हुआ था, वे एक कंठ से दूसरे कंठ मौखिक रूप से चले पा रहे थे और प्राचीन लिखित ग्रंथ का अनादर करने की परिपाटी भी पूर्वकाल से अब तक फा०१९ राजनैतिक