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दूसरा भाग
 


मालिक का पता लगाना चाहिये और यहाँ के भेदो को जानना चाहिये, परन्तु उसने सोचा कि यहा अकेला और बिना किसी मददगार के रह कर में कुछ भी न कर सकूँगा। यहां के रहने वाले विल्कुल ही सीधे साधे नहीं मालूम होते और यद्यपि अभी तक यहाँ किसी मर्द की सूरत दिखाई न दी परन्तु औरतें भी यहां की ऐयारा ही जान पडती हैं । क्या यह औरत भी मुझसे ऐयारी के ढग पर बातें कर रही है? सम्भव है कि ऐसा ही हो और मझे इस घाटी के बाहर ले जाने के बहाने से यह किसी खोह या कन्दरा में फंसा कर पुनः कैद करा दे। अभी तक तो मेने इस बात की भी जाँँच नहीं की कि इसकी सूरत असली है या बनावटी। खैर में अभी अभी इस बात को भी जाँँच कर लूंगा और इसके बाद जब इस घाटी के बाहर निकल जाने के लिये इसके साथ विसी खोह या सुरंग के अन्दर घुसूंगा तो पूरा होशियार रहूंंगा कि यह मुझसे दगा न करें, न इसे अपने आगे आगे चलने दूंगा और न पीछे रहने दूंगा वल्कि इसका हाथ पकडे रहू़ंंगा या कमर में कमन्द बांध कर थामे रहूंंगा। इस खोह के बाहर निकल जाने पर मैं सब कुछ कर सकूँगा क्योंकि तब यहाँ का रास्ता भी देखने में आ जायगा, तब अपने दो एक शागिर्दो को मदद के लिये साथ लेकर पुनः यहा आऊंगा और यहा रहने वालो से समझूगा जिन्होने मुझे गिरफ्तार किया था।

इत्यादि तरह तरह की बातें गदाधरसिंह बहुत देर तक सोचता रहा और इसके बाद कला से बोला, "अच्छा मैं तुम्हे दलीपशाह के पास ले चलूंंगा मगर पहिले तुम पानी से अपना मुंह धोकर मुझे विश्वास दिला दो कि तुम्हारी सूरत बदली हुई नहीं है या तुम ऐयार नहीं हो और मुझे कोई धोखा नहीं दिया चाहती।"

कला०। हाँ हाँ मैं अपना चेहरा धोने के लिये तैयार हूँँ', पानी दो।

गदा०। (अपने बटुए में से पानी की एक छोटी सी वोतल निकाल कर मोर कला को ओर बड़ा कर) लो यह पानी तैयार है।

कला ने गदाधरसिंह के हाथ से पानी लेकर अपना चेहरा धो डाला।भू०२-२