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२७
दूसरा भाग
 



तुम लोगों को भी इनसे बडी मदद मिलेगी।

कला०। ठीक है और मैं जरूर इन पर विश्वास करूंगी क्योकि इनका पूरा पूरा हाल बहिन इन्दुमति से सुन चुकी हूँँ, यद्यपि ये गदाधरसिंह के दोस्त है और हम लोग उसके साथ दुश्मनी का बर्ताव कर रहे है।

गुलाब०(कला से) यद्यपि गदाधरसिंह मेरा दोस्त है मगर (प्रभाकरसिंह की तरफबता कर) इनके मुकाबले में मैं उस दोस्ती को कुछ भी कदर नहीं करता। इनके लिए मै उसी को नहीं बल्कि दुनिया के हर एक पदार्थ को जिसे मैं प्यार करता हूं छोड देने के लिये तैयार है। अच्छा जाने दो इस समय पर इन बातो की जरूरत नही, पहिले उस (गदाधरसिंह ) से बातें कर के उसे विदा कर लो फिर हम लोगों से बातें होती रहेंगी। हां यह तो बताओ कि जब तुमने इसे गिरफ्तार ही कर लिया था तो फिर मार क्यों नही डाला?

कला०। हम लोग इसे मार डालना पसन्द नही करती बल्कि यह चाहती है कि जहाँ तक हो सके इसकी मिट्टी पलीद करें और इसे किसी लायक न छोडें। यह किसी के सामने मुँँह दिखाने के लायक न रहे बल्कि आदमी की देख कर भागता फिरे, और इसके माथे पर कलंक का ऐसा टीका लगे कि किसी के छुड़ाये न छूट सके और यह घबड़ा कर पछताता हुआ जंगल जंगल छिपता फिरे।

गुलाब०। बेशक यह बहुत बड़ी सजा है, अच्छा तुम उसमे बाते करो।

गदाधरसिंह दूर खड़ा हुआ इन लोगो को तरफ घबराकर देख रहा था मगर इन लोगों की बातें उसे कुछ भी सुनाई नहीं देती थी और न वह हावभाव ही से कुछ समझ सकता था, हां इतना जानता था कि अब वह कला का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।

कला०। (कुछ आगे बढ़ कर ऊंची आवाज में गदाधरसिंह से) अबतो तुम इस घाटी को बाहर निकल पाए, मैने जो कुछ वादा किया था सो पूरा हो गया, अब तुम मुझे दलीपशाह के पास ले चल कर अपना वादा पूरा करो।

गदा०। (कला की तरफ बढ़ कर) बेशक तुम्हारो ऐयारी मुझ पर चला