पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१३४

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२६ दूसरा भाग ही चला गया था मगर वास्तव में वह थोडी दूर नाकर छिप रहा था और अब मौका पाकर इन दोनो के पोछे पीछे छिपता हुप्रा रवाना हुना। तीसरा बयान पया भूतनाथ को कोई अपना दोस्त कह सकता था ? क्या भूतनाय के दिल में किसी की मुहब्बत कायम रह सकती थी ? क्या भूतनाथ किसी के एहसान का पाबन्द रह सकता था ? यया भूतनाथ पर किसी का दवाव पड सकता था? या भूतनाथ पर कोई भरोसा रख सकता था? इसका जवाब देता वहुत कठिन है । जो गुलाबसिंह भूतनाथ को अपना दोस्त कहता था प्राज वही गुलाबसिंह भूतनाथ पर भरोसा नहीं करता और इसी तरह भूतनाथ भी उसे अपना दोस्त नहीं समझता । जिस प्रमाकरसिंह की मदद के लिए मूत- नाथ कमर वाघ कर तैयार हुआ था प्राज उसी प्रभाकरसिंह पर ऐयारी का वार करके इन्दुमति को सताने के लिए वह तैयार हो रहा है। सूरत बदले हुए प्रभाकरसिंह और गुलाबसिंह को यद्यपि भूतनाथ ने पहिचाना न था मगर उसे किसी तरह का शक जरूर हो गया था और यही जाच करने के लिए उसने इन दोनो का पीछा किया था । रात पहर भर से ज्यादे जा चुकी थी । गुलाबसिंह और प्रभाकरसिंह मापस में बात करते हुए चुनारगढ की तरफ जा रहे थे । वे दोनो इस विचार में थे कि कोई गाय या वस्ती प्रा जाय तो वहा थोडी देर के लिए माराम करे । कुछ दूर मोर जाने के बाद वे दोनो ऐसी जगह पहुँचे जहाँ- जंगलो पेड़ यहुत ही कम होने के कारण यह जमीन मैदान का ममूना वन रही थी पोर पगडण्डी रास्ते से कुछ हट कर दाहिनी तरफ एक सुन्दर फूमा भी था जिसे देख कर इन दोनो की इच्छा हुई कि इसो कुएं पर बैठ कर कुछ देर आराम कर लें तव प्रागे बढ़ें। फूएं के पास जाकर देखा कि एक मादमी गमछा विछाये उसकी जगत पर माराम फर रहा है घोर टोरी तथा लोटा उसके सिरहाने पी तरफ पड़ा हुमा है।